साढ़े 4 साल में कितना बदल गए ओपी चौधरी !
छत्तीसगढ़ में 2000 करोड़ के शराब घोटाले को आधार बनाकर भाजपा प्रदेश महामंत्री ओपी चौधरी ने राज्य सरकार को घेरा है। कांग्रेस भले ही इसे आधारहीन बताए पर शराब व्यवसाय से जुड़े लोग और शराबी जन 2019 से शराब की क्वालिटी और उपलब्धता पर सवाल उठाते रहे हैं।
बीते साढ़े 4 साल में ओपी ने प्रदेश स्तर पर सरकार की नीतियों की खुलकर आलोचना करने से लेकर आगे आकर विरोध प्रदर्शन में भाग लिया है फिर चाहे वह बस्तर हो या सरगुजा। वह सुलभ हैं, आप उनसे कभी भी मुलाकात कर सकते हैं। साढ़े चार साल पहले जब वह अपना पहला चुनाव हारे थे तब उनको लेकर कई तरह के सवाल उठाए गए थे। ओपी चुप रहे, सर से भैया का सफर तभी तय हो चुका था अब समय था तो हर जगह स्वीकार्यता की जिसको उन्होंने अपने बूते बनाया।
एक वह भी समय था जब रायगढ़ समेत खरसिया के राजनीतिक सेठों की कुर्सियां हिल गईं थी कि कोई बड़ी पैठ वाला अघरिया उनकी पार्टी में आएगा तो उनका वर्चस्व खत्म हो जाएगा, अभी तक जो निवेश किया है उसका फल कैसे मिलेगा? पुरजोर कोशिश भी की गई कि ओपी उनपर हावी न हों। ओपी समेत भाजपा के नेता जानते हैं कि बीते चुनाव उनकी जड़ पर मट्ठा किसने डाला। नतीजा, बिना किसी शोरगुल के ओपी ने संगठन में अपनी पैठ बना ली है। सेठ खुदई अपना रास्ता नाप लिए। आधे दर्जन से अधिक गुट में बंटे रायगढ़ भाजपा के हर गुट में ओपी की स्वीकार्यता है क्योंकि सब ओपी की वैल्यू जानते हैं।
ओपी खरसिया से चुनाव लड़ेंगे या नहीं, चंद्रपुर सेफ होगी, डभरा बुरा नहीं है जैसी कभी भी चर्चा शुरू हो जाती है और अपने-अपने हिसाब से कयास सब लगाते हैं। राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं और न ही कोई भविष्यवाणी संभव। चाय वाले से लेकर नाऊ के पास किसी भी जानकार कार्यकर्ता व खबरनवीस से कमतर जानकारी नही होती।
वर्तमान में ओपी का कद देखें तो वह प्रदेश भाजपा के केंद्र में हैं और केंद्र के चहेते। उनके करीबियों की मानें तो चुनाव की तैयारियों में उन्होंने खुद को झोंक दिया है। सभा, आयोजन और बैठक के बाद देर रात से अलसुबह योजना, क्रियान्वयन, डेटा व रणनीति बनाते हैं। ओपी की निगाह प्रदेश की सभी विधानसभा सीटों पर हैं उन्हें एक सीट के मोह में बांधना मूर्खता होगी।
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सेकंड लाइन से जूझती भाजपा-कांग्रेस
फिलवक्त ओपी चौधरी को देखें तो समझ आता है कि वही अभी प्रदेश बीजेपी का बड़ा चेहरा हैं बस्तर से लेकर सरगुजा हर जगह उनकी डिमांड हैं जब वह किसी प्रदर्शन या कार्यक्रम में शामिल होते हैं तो उसकी महत्ता और बढ़ जाती है। कांग्रेस भले ही इसे खारिज करे पर सच्चाई को जितनी जल्दी स्वीकार कर अपनी रणनीति तय करे बेहतर है। प्रदेश की राजनीति में वही घिसे-पिटे चेहरे दोनों ही पार्टियों में है दूसरी पंक्ति में बड़े नाम है ही नहीं या फिर यूं कहें 15 साल सत्ता सुख भोगी बीजेपी और इतने ही दिन विपक्ष में रही कांग्रेस ने बनाया ही नहीं। बीजेपी में केदार कश्यप और महेश गागड़ा तो अपने ही क्षेत्र में नहीं दिखते तो राज्य की बात बेमानी है। बहुत संभव है कि ओपी आने वाले समय में सूबे के मुखिया बने। वह युवा है, अनुभवी हैं और सबसे बड़ी बात भारतीय प्रशासनिक सेवा में रह चुके हैं उन्हें खारिज करना इतना आसान नहीं होगा। ओपी के अपने कई मित्र-सीनियर-जूनियर अभी भी सेवा में हैं। आप कहीं भी रहें दोस्त का साथ प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से आपको मिलता ही है यहीं पर बाकी के नेता ओपी से गच्चा खा जाते हैं।
भाजपा में अभी जहां खुद के लोगों से द्वंद चल रहा है वहां सीएम फेस को लेकर अस्पष्टता अवश्यसंभावी है। पर इतना तो तय है कि रायगढ़िया सीएम कोई बना तो ओपी से बेहतर और कोई नहीं हो सकता।