इंजीनियर : विकास की नींव और भविष्य की राह
15 सितंबर का दिन, जब वंदे भारत एक्सप्रेस नई पटरियों पर तीव्र गति से दौड़ती है, जब एक क्लिक पर यूपीआई के माध्यम से करोड़ों का लेन-देन सेकंडों में हो जाता है, और जब चिनाब नदी के ऊपर बना दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल बादलों को छूता हुआ प्रतीत होता है, तो हम आधुनिक भारत की प्रगति के इन मूर्त प्रतीकों को देखते हैं। ये सभी उपलब्धियां है भारतीय इंजीनियरों की, उन राष्ट्र-निर्माताओं की जिन्होंने विज्ञान के सिद्धांतों को समाज की सेवा में ढाला है। आज का दिन हमें उस महापुरुष की याद दिलाता है, जिनके सम्मान में यह दिन समर्पित है, सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया। भारत सरकार ने 1968 में उनके जन्मदिन को अभियंता दिवस के रूप में घोषित किया, ताकि उनकी असाधारण विरासत को हमेशा याद रखा जा सके। जानिए वर्तमान में इंजीनियर के लिए चुनौती और इंजीनियरिंग में परिवर्तनों को एक्सपर्ट्स द्वारा
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<b>तकनीक से काम हुआ आसान : विनोद कुमार मिंज, ईई, पीएमजीएसवाय</b>
इंजीनियरिंग ने मुझे अनुशासित होना सिखाया है। अपनी पढ़ाई के बूते आज मैं यहां पहुंचा हूं। वर्तमान में मैं मैनेजेरियल पद पर हूं पर इसे निर्वाह करने की बेसिक ट्रेनिंग तो सालों पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई ने दी है। अलग-अलग विचार और क्षमता के लोगों के साथ कैसे कार्य करना है यह मैंने पढ़ाई के दौरान सीखा। डाउनलाइन को साथ लेकर अपलाइन की मदद से मैं कार्य करता हूं। यह कहना है प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के कार्यपालन अभियंता विनोद कुमार मिंज का। वह जितने सरल और सहज हैं उतने ही अपने कार्य के प्रति गंभीर।
50 वर्षीय विनोद कुनकुरी के रहने वाले हैं और वहीं से प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद साल 2000 में शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय बिलासपुर से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री ली। फिर इसी साल शुरू हुए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में बतौर कंसलटेंट जुड़ गए और गांवों को मुख्य सड़क से जोड़ने के कार्य में आज तक लगे हुए हैं। 2008 में पीएससी क्लीयर कर सहायक अभियंता बने मूल विभाग ग्रामीण यांत्रिकी सेवा (आरईएस) मिला पर प्रतिनियुक्ति पर पीएमजीएसवाय में हैं।
गांव का ही व्यक्ति जब गांव के लिए काम करे तो इससे असरदार और कुछ नहीं होता। ईई विनोद को अपने कार्य में जिम्मेदारी के साथ आनंद भी आता है। वह कहते हैं कि इंजीनियरिंग के बाद मुझे गांव के लिए कुछ करना था जो कि इस जिम्मेदारी से पूरी कर रहा हूं। सीनियर्स के मार्गदर्शन, जूनियर्स के सहयोग से हमारी टीम लगातार बेहतर कार्य कर रही है। समय के साथ निर्माण कार्यों में मशीनों का उपयोग अधिक और टेक्नालॉजी भी डेवलप हुई है इससे कार्य आसान हो गया है। क्यूरिंग में समय का कम लगना, बड़ी मिक्शचर मशीनें और सर्वे के नए तकनीक से समय की बचत तो होती ही है काम भी बेहतर होता है। पहले लोग काली मिट्टी में सड़क बनाने से डरते थे अब हम उन्हें मिट्टी परीक्षण की रिपोर्ट दिखाकर उन्हें अपने भरोसे में लेकर आगे कार्य करते हैं। अब तो हम प्लास्टिक के उपयोग से भी टिकाऊ सड़क बना रहे हैं। बरसात में जो गांव मुख्य धारा से कट जाते थे आज सभी सदैव बराबर पीएमजीएसवाय की पुल-पुलिया-सड़कों से जुड़े रहते हैं।
श्री मिंज बताते हैं कि जब कभी दूरस्थ ग्राम जाते हैं तो कोई न कोई सड़क, पुल-पुलिया हमें पीएमजीएसवाय की मिल ही जाती है। जब किसी गांव में पहली बार सड़क पहुंचती है तो उस गांव के लिए परिवर्तनीय घटना हो जाती है। लोंगों को मुख्य धारा में सड़क के माध्यम से जोड़ने के बाद जो आनंद आता है उसकी कोई सीमा नहीं होती। कार्य के दबाव में हम कई दिनों तक घर से दूर रहते हैं, छुट्टी तक नहीं मिलती पर जब लोगों के चेहरों पर खुशी देखते हैं तो सारे तनाव खत्म हो जाते हैं।
भावी इंजीनियर सनद रहे हैं आपके पास सीखने के लिए सबसे ज्यादा टूल हैं लेकिन आप सीख क्या रहे हैं यह आप पर निर्भर करता है। मेहनत का कोई शार्ट कट नहीं होता। जितना उसमें लगना है लगेगा। जिम्मेदारी लेने से कतराएं नहीं यही आपको बड़ा बनाएगी। कॉलेज के दिन अच्छे होते हैं यही हमारा मार्ग प्रशस्त करते हैं पर अब कॉम्पिटिशन बहुत बढ़ गया है इसी को मद्देनजर रखते हुए आप आगे बढ़ें।
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<b>गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं : अमित कश्यप, ईई पीडब्लूडी</b>
जिले के सबसे सीनियर कार्यपालन अभियंता अमित कश्यप अपनी साफगोई और स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते हैं। वो लाइमलाइट से परे अपने विभागीय कार्य में इतने रमे रहते हैं कि उन्हें और किसी से काई अर्थ नहीं। लोक निर्माण विभाग में 18 साल से अपनी निर्विरोध छवि और गुणवत्तायुक्त कार्य करवाने के लिए उनकी विभाग में हनक है।
गृह जिला बिलासपुर के रहने वाले 49 वर्षीयी अमित के पिता और दो भाई भी इंजीनियर हैं। उन्होंने 1998 में बिलासपुर के शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय से सिविल इंजीनियर की डिग्री ली। फिर करीब 5 साल इसी कॉलेज में अध्यापन का कार्य किया। 2003 में सेंट्रल पीडब्ल्यूडी की परीक्षा पास कर पश्चिम बंगाल के बालूर घाट के पास बांग्लादेश सीमा के पास पोस्टिंग मिली। 5 साल यहां कार्य करने के बाद 2008 में पीएससी के माध्यम से सहायक अभियंता की नौकरी लगी। पूर्व में जांजगीर-चांपा एवं रायपुर में पदस्थ रहे । नवंबर 2023 में शासन ने रायगढ़ पदस्थ किया।
श्री कश्यप कहते हैं कि निर्माण कार्यों में मशीनों एवं नए तकनीक के आने से काम सटीक और समय से होने तो लगे हैं व कार्य की गुणवत्ता की भी मानीटरिंग में सुविधा हुई है। विभाग को आंकलन करने में आसानी होती है। हमारा विभाग सदैव कार्य करता रहता है। सड़क, भवन, पुल,पुलिया हम बनाते हैं यानी लोगों की नजरों के सामने रहते हैं। क्वालिटी संबधी किसी भी समस्या के लिए लोग सीधे विभाग को दोषी मानते हैं। पर ऐसा नहीं है। हमें समझना पड़ेगा कि कोई भी इंजीनियर कार्य के गुणवत्ता से समझौता नहीं करता है। कभी कभी निर्माण कार्य में विभिन्न कारणों से कमी परिलक्षित होती है।जैसे सड़क पर ओवरलोड गाड़ियों का चलना, सड़क के किनारे लोग कब्जा करके प्योंठा या सीढ़ी बना लेंगे तो पानी जाम होगा सड़क के बीच में आएगा तो सड़क टूटेगी ,साथ ही कुछ ठेकेदार की लापरवाही भी कारण है। कुछ एक ठेकेदार की बदमाशी की वजह से पूरा विभाग लोगों की नजर में बुरा बन जाता है।
श्री कश्यप आगे बताते हैं कि आजकल इंजीनियरिंग काॅलेज बहुत खुल गए , लेकिन संसाधन एवं फेकल्टी की कमी के कारण छात्र लाखों खर्च के बाद भी गुणवत्तायुक्त शिक्षा से वंचित हो रहा। शिक्षा प्रैक्टिकल बेस्ट होनी चाहिए ताकि छात्र में विषय के प्रति उत्सुकता बनी रही। हमारे समय में एमपी सीजी एक था तो दोनों को मिलाकर 13 इंजीनिरिंग कॉलेज और 2000 सीटें हुआ करती थी जिसमें क्रीम बच्चे ही जा पाते और अच्छे इंजीनियर बनकर निकलते। आज बच्चों और उनके पालकों को क्वालिटी एजुकेशन पर फोकस करना होगा।
अंत में ईई अमित कश्यप ने बताया कि जो कार्य वह कर रहे हैं उनसे पहले कोई और कर रहा था और आगे कोई और करेगा। मैं चाहता हूं कि मैं ऐसा कार्य करूं कि जिसे मेरे जाने के बाद भी लोग याद रखें कि इसे मैंने बनवाया था। 17 साल की नौकरी में मैंने आज तक गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं किया।
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<b>काम होंगे बस लगन होनी चाहिए : मनीष कुमार गुप्ता, ईई, केलो परियोजना</b>
47 वर्षीय मनीष कुमार गुप्ता केलो परियोजना के कार्यपालन अभियंता हैं। जो हंडी चौक रायगढ़ से ताल्लुक रखते हैं। 1996 में रायगढ़ पॉलीटेक्निक से सिविल ब्रांच में डिप्लोमा करने के बाद भोपाल के मौलाना अब्दुल इंजीनियरिंग कॉलेज से 1999 में सिविल इंजीनियर की डिग्री ली। फिर पैतृक व्यवसाय को संभाला जहां उनका मन नहीं लगा तो 2008 में पीएससी क्लीयर करके जल संसाधन विभाग में असिस्टेंट इंजीनियर बने।
यहां उनका कार्य उम्दा है वह विभाग के बेहतरीन इंजीनियर्स में से एक हैं। इसलिए उन्हें इस वक्त रायगढ़ में संचालित केलो परियोजना का कार्यपालन अभियंता बनाकर राज्य शासन ने भेजा है। मनीष कहते हैं कि विभाग में कार्य अच्छे कर पाने का कारण है कि मैं थोरोटिकल अप्रोच रखता हूं। यानी
काम का प्रयास करते रहना है, नियम स्वत: सहयोगी रहते हैं। काम होंगे बस लगन होनी चाहिए। यह जुझारूपन हमारी इंजीनियरिंग की ही देन है कि नैवर गिव अप, कीप इट अप।
मैं खुशनसीब था कि जहां भी मैंने पढ़ाई की वहां मुझे शिक्षक बेहतरीन मिले फिर वह रायगढ़ का पॉलीटेक्निक हो या भोपाल का एमएसीटी। तब रिसोर्स कम थे जो ज्ञान अर्जित करना होता था वह किताबें थी, टैक्स बुक के अलावे रेफरेंस बुक। आज भी हमारे जेहन में हमारी पढ़ाई है क्योंकि उस समय दिमाग भटकाने के लिए कम ही चीजें थी। आज अच्छी पढ़ाई करना एक तपस्या करने के जैसा है।
आज के समय में बच्चे सोच विचार के इंजीनियरिंग में और जो आए विषय चुनने में अपनी सुनना कि आपको किसमें रूचि है। विषय के कोर में ध्यान दें और तल्लीनता से पढ़ाई जारी रखें।
मनीष इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि पुराने स्टाफ चलती फिरती किताब हैं मैं जब कहीं भी उलझ जाता हूं तो ये तुरंत हल बता देते हैं। संभवत: ये तकनीकी पढ़ाई नहीं किये होते हैं फिर भी अनुभव उनका अच्छे से अच्छे इंजीनियर के ज्ञान के परास्त कर देता है। यह होता है अनुभव जिसे आप से कोई नहीं छीन सकता। शासकीय विभाग में सामंजस्य बैठाना एक कला है जिसके लिए उच्च अधिकारियों से संवाद एवं मार्गदर्शन आवश्यक है।
अंत में मनीष कहते हैं 90 के दशक में रायगढ़ जैसी जगह से निकलकर इंजीनियरिंग करने जाना वह भी शिशु मंदिर के छात्र के लिए शुरू में थोड़ा अजीब होता था पर जैसे ही मैंने वहां प्रवेश लिया और वहां से इंजीनियर बनकर लौटा मेरा आत्मविश्वास बढ़ चुका था। जीवन के प्रति मेरा नजरिया, मेरी सोच और काबलियत सभी बदल चुकी थी। यह था इंजीनियरिंग का कमाल जिसने मेरी दुनिया बदल दी। आज हम लोगों से ज्यादा अवसर नई पीढ़ी के पास है बस वह अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाए तो उनके लिए नामुमकिन कुछ भी नहीं।
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<b>हर चीज में इंजीनियरिंग है समझ कर देखिए : प्रोफेसर रितेश शर्मा</b>
टेक्निकल सिद्धांत का उपयोग जीवन की किसी समस्या के बेहतर समाधान के लिए किया जा सकता है यह घर के कपड़े जल्दी सुखाने से लेकर ऑफिस के काम की री रूटिंग के लिए किया जा सकता है। पानी या कोई भी पदार्थ की तरह जीवन भी स्टेबिलिटी चाहता है। न्यूटन का तीसरा नियम जैसा बोओगे वैसा काटोगे। ऑफिस / सामाजिक पॉलिटिक्स में इन इलास्टिक कोलिशन थ्योरी। ट्रस थ्योरी जितने लोगों का सपोर्ट होगा उतने स्टेबल रहेंगे आप। ग्रेडिएंट थ्योरी चीज़ें हमेशा ज्यादा से कम की ओर ही जाती हैं (उल्टा करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है जैसे फ्रिज एसी) अच्छी बाते ज्यादा ज्ञान वाले से ही मिलती हैं।
अपनी कक्षाओं में छात्रों को जीवन और इंजीनियरिंग के सिद्धांतों से जोड़ते प्रोफेसर रितेश शर्मा को हर कोई गंभीरता से सुनता है। राष्ट्रीय प्रौद्योगिक संस्थान रायपुर से अध्यापन शुरू करने वाले रितेश ने केआईटी में 13 साल पढ़ाया। फिर आईटीआई में ज्ञान का प्रकाश फैला रहे हैं। इनकी समझाने के प्रति एकदम प्रैक्टिकल एप्रोच रहती है। सरल शब्दों और उदाहरण से सिद्धांत और प्रेमेयों को छात्रों को कंठस्थ करवा देते हैं। इसी कारण रितेश सर आईटीआई हो या केआईटी में अदब से लिया जाने वाला नाम है।
रायगढ़ के रहने वाले प्रो. रितेश शर्मा ने सरस्वती शिशु मंदिर से प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद रायपुर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से 2010 में मेकेनिकल इंजीनियर बने। एनआईटी रायपुर और केआईटी में अध्यापन का कार्य किया फिर 2015 में एमटेक मैट्स विश्वविद्यादय से पूरा किया। अभी ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी से पीएचडी जारी है। फिलहाल रितेश 2023 से राज्य सरकार के एम्प्लॉयमेंट ट्रेनिंग डिपार्टमेंट में आईटीआई रायगढ़ में ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट अधिकारी के रूप में पदस्थ हैं।
वह मानते हैं कि ज्यादा मेहनत रिप्रजेंट्स बेहतर जिम्मेदारी निभाना, पढ़ाई एम्प्लॉयबिलिटी बढ़ाने के तरीकों में से एक है। प्रो. रितेश बताते हैं कि उन्हें इंजीनियरिंग के लिए कोई खास संघर्ष नहीं करना पड़ा बस अनुकंपा नियुक्ति की कोशिश के दौरान इंजीनियरिंग में 2 साल बाद प्रवेश लिया। थोड़ा विलंब हुआ पर अब अब ठीक है। इंजीनियरिंग ने हमे बनाया है। मेरोटियस छात्र होने के बाद भी कोई लेक्चर या प्रैक्टिकल से अधिक दूसरी घटनाएं रोमांच ले आती हैं। मुझे आज भी याद है फर्स्ट ईयर खत्म होने के बाद वेलकम पार्टी के दौरान शिकायत होने पर पुलिस का वेन्यू पर पहुंचना और हमारा पेट भर के मार खा के सूखी नाली में छिपना। ऐसी घटनाएं जीवनभर याद रहती है।
प्रो. शर्मा बताते हैं आजकल प्रैक्टिकल / एप्लीकेशंस बेस्ड पढ़ाई की कमी है जिससे लिमिटेड इंस्टीट्यूट्स में ही बेहतर शिक्षा मिल रही है। टेक्निकल एजुकेशन की बुनियाद बेहतर करने के लिए सुधार के पैमाने तैयार करना जरूरी है।
भावी इंजीनियर्स को नसीहत देते हुए वह कहते हैं कि बच्चे पसंद की ब्रांच सेलेक्ट करें, इंटर डिसिप्लिनरी ब्रांच लेना बेहतर होगा। फिलहाल एआई और ऑटोमेशन, इंजीनियरिंग और इंजीनियर पर ज्यादा प्रभाव नहीं डाल सकते। ये अभी मानवीय बुद्धिमता से काफी पीछे हैं मौलिकता मानव जाति के पास ही रहेगी कुछ और साल।
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<b>जो सीखता है वह बढ़ता है : कमल प्रसाद कंवर, ईई, पीएचई</b>
जिले के सबसे कम उम्र के कार्यपालन अभियंता 34 वर्षीय कमल प्रसाद कंवर लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में पदस्थ हैं। अपनी ऊर्जा और दूरदर्शिता से वह विभागीय कार्यों में बेहतर कर रहे हैं। तकनीकी और गैर तकनीकी स्टाफ के साथ उनका सामंजस्य गजब का है। जगदलदपुर शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग करने के बाद 2015 में हाउसिंग बोर्ड में इंजीनियर बने फिर 2017 में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के इंजीनियर के लिए हुई परीक्षा में इन्होंने अपने वर्ग में स्टेट टॉप किया।
ईई कमल कहते हैं कि जो पढ़ा वह आज काम आ रहा है। इंजीनियरिंग की शिक्षा हमें हर काम को आसान तरीके से करना सिखाती है बस आपमें लगन होनी चाहिए। मैं सामान्य परिवार से था, छोटी जगह से इंजीनियरिंग करने गया। थोड़ी झिझक थी पर जैसे ही हॉस्टल गया वहां एक से एक धुरंधर लोग मिले। कोई कहीं का टॉपर तो कोई दूसरी विधा में आगे। सब साथ थे इसी कारण कॉलेज का हॉस्टल मेरे लिए एक लर्निंग सेंटर था। 4 साल की पढ़ाई के बाद मैं आत्मविश्वास से लबरेज कुछ करने को तैयार था। मां के चतुर्थ वर्ग कर्मचारी होने के नाते इंजीनियरिंग करने में संघर्ष हुआ, पैसे का मोल मालूम था इस कारण सिर्फ मेहनत को तव्जजो दी। लोग सफलता देखते हैं उसके पीछे की मेहनत को नहीं। विभागीय कार्य में सभी का सहयोग इसलिए भी मिलता हैं कि मैं सबके लिए हर समय तैयार रहता हूं। फील्ड का अलग ही एक्सपोजर होता है। समय के साथ परिपक्वता और अनुशासन बढ़ता ही जाता है।
ईई कमल बताते हैं कि मैं अपने मूल को जानता हूं इसलिए अपना कार्य ईमानदारी और लगन से करता हूं। जमाने में नकारात्मकता और सकारात्मकता दोनों हैं यह आप पर निर्भर करता है आप कैसे आगे बढ़ते हैं। वर्तमान में इंजीनियर बनना आसान है पर इंजीनियरिंग का गुर वही सीख पाता है जिसमें लगन होती है। सिर्फ डिग्री लेने वाले भीड़ में खो जाते हैं क्वालिटी पढ़ाई वाले ही आगे आते हैं। अभी कॉमप्टिशन बढ़ गया है यहां जो सीखता है वही आगे बढ़ता है और सीखने की प्रक्रिया कभी खत्म नहीं होती।
अंत में आज के भावी इंजीनियर्स के पास सीखने के लिए कई माध्यम हैं पर वो जिस माध्यम से सीखें उसे कंठस्थ करें। अन्यथा आगे पाट पीछे सपाट हो जाता है। सोशल मीडिया के इस युग में भावी इंजीनियर्स के दिमाग को दिग्भ्रमित कर रही है, समय रहते उन्हें एकाग्रचित्त होकर अपने विषयों पर ध्यान देना चाहिए। तभी तो वह बच्चा आगे जाकर मल्टीस्कील्स वाला बन पाएगा।