अजय ने इस शहर से वो वादे निभाये हैं, जो इस शहर ने मांगे न थे
हम रायगढ़ वाले अपनी तरह से अगर राजकपूर को लें, उसमे दादा साहब फाल्के मिलाएं, हबीब तनवीर को शक्कर की तरह बुरकें, बाबा नागार्जुन की फक्कड़-मस्ती का वर्क लगायें, और इस मिश्रण को बड़े भाई की पैकेजिंग में सामने रखे, तो जो मीठी मीठी डिश बने - वो भाऊ होते है।
अजय आठले- रंगकर्मी, शोमैन, ऑर्गनाइजर, विचारक, एक्टिविस्ट, धीर गम्भीर, चिन्तामुक्त, हंसता.. जी हल्का कर देने वाला शख्स। कॅरोना ने छीन लिया।
रायगढ़ इप्टा उनकी सृजनशीलता से उठी है। साधारण लोगो मे टैलेंट खोजकर उसे रंगमंच की स्पॉटलाइट में खड़ा कर देना, पहचान देना, आत्मविश्वास भर देना भाऊ का शगल रहा। जितनी प्रतिभाओं को उन्होंने तराशा, वो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से लेकर मुबई की मायानगरी तक उनका नाम लेते हुए पताका लहरा रहे हैं।
साल में एक बार आयोजित होने वाला पांच दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य समारोह, यह ज्योतिपुंज खुद जलकर आयोजित करता। देश का हर नामी गिरामी रंगमंच का स्टार और मशहूर नाटक हमने अपने शहर में देखे हैं। तमाम सरकारी फंड और तामझाम के साथ होने वाले चक्रधर समारोह के मुकाबले इप्टा का यह एकल प्रयास, बराबर छूटता था।
रायगढ़ को कल्चरल सिटी और संस्कारधानी का दर्जा क्लेम करने में यह कार्यक्रम बड़े अंक देता। इसे भाऊ का योगदान कहना अतिश्योक्ति न होगी। रायगढ़ इप्टा की ओर से दिया जाने वाला शरदचन्द्र वैरागकर सम्मान किसी भी रंगकर्मी के सीने पर जीवन भर की उपलब्धियों का बड़ा बैज है।
बरसों पहले छह फुटे इस शानदार व्यक्तित्व लांग कोट पहने, डिग्री कालेज के वार्षिकोत्सव में देखा था। वह छवि दिल मे बस गयी। कुछ बरस पहले मैनचेस्टर में ठीक वैसा कोट दिखा। चट से खरीदा, कभी कभी पहनता हूँ, पर हम मोर्टल्स में वो बात कहां। हम उनके जैसा दिख नहीं सकते, बन नहीं सकते। बस, रश्क कर सकते है, आदर कर सकते हैं।
कुछ दिनों पहले भगतसिंह पर चर्चा के लिए उन्होंने बुलावा दिया। यह कोई दादा साहब फाल्के सम्मान से कम न था। जब बातचीत चल रही थी, वे कैमरे के पीछे से चर्चा देख रहे थे। एक बार कैमरा बन्द हो गया, चर्चा चलती रही। फिर रीटेक हुआ, मगर थॉट्स और शब्द समान नही थे। मगर भाऊ वैसे ही मजा लेते रहे।
लॉक डाउन के दौरान उनके पास मिलने गया था। यह एक ही बार है जब उनके घर गया। खानदानी लोग हैं, पर सादा रहन सहन, कोने कोने से वही बौद्धिकता और विचार झलकते जिन्हें आप उनकी बातों में पाते है। जो अनुरोध किया था, उन्होंने लाकडाउन खत्म होने के बाद कोशिश करने का वादा किया था। टूट गया।
फिर उनके स्वास्थ्य की कामना को लेकर पोस्ट लिखी। उनका जवाब आया, स्वस्थ होकर मिलते हैं। वह वादा भी टूट गया। मगर अजय आठले ने इस शहर से वो वादे निभाये है, जो इस शहर ने मांगे न थे। स्वेच्छा से समाज के लिए, कला के लिए, पैशन के लिए पूरे किए गए अनकहे वादे एक शख्स को कितना बुलन्द बना जाते है, अजय आठले के कद से जाना जा सकता है।
भाऊ को सलाम। पर अंतिम नही.. हम ये सलाम हमेशा करते रहेंगे।