raigarh express

Raigarh Express, news of raigarh chhattisgarh

Thursday, September 18, 2025
raigarh express
राष्ट्र के निर्माता: कल, आज और कल के रायगढ़ के इंजीनियर
देश में हर वर्ष 15 सितम्बर को अभियंता दिवस मनाया जाता है। यह दिन भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है, जिन्होंने अपने अद्वितीय कौशल और दृष्टिकोण से राष्ट्र के औद्योगिक और तकनीकी विकास को नई दिशा दी। अभियंता केवल मशीनों और संरचनाओं के निर्माता ही नहीं, बल्कि समाज की प्रगति के आधार स्तंभ हैं। पुल, सड़क, ऊर्जा, सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवाएँ और अंतरिक्ष अनुसंधान हर क्षेत्र में उनकी मेहनत और रचनात्मकता झलकती है। पिछले वर्षों में भारत और रायगढ़ जिले ने भी ने औद्योगिक क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया और हरित ऊर्जा जैसी पहलों ने इंजीनियरों को बेहतर गुणवत्ता का उत्पादन और नवीन समाधान प्रस्तुत करने का अवसर दिया है। आज भारत वैश्विक स्तर पर मैन्युफैक्चरिंग और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उभरती हुई शक्ति है। अभियंता दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि अभियंताओं की दूरदृष्टि और परिश्रम ही आधुनिक भारत के निर्माण की सच्ची नींव है। आज के इस विशेष लेख में हम अपने अंचल के कुछ इंजीनियर्स से हुई बातें साझा करेंगे, qqq <b>समस्या कितनी बड़ी क्यों न हो समाधान अवश्य होता है : अनिल कुमार, ईडी एनटीपीसी लारा</b> रायगढ़ छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक राजधानी के रूप में जाना जाता है जो विकास से राह पर रायगढ़ तेजी से विकास कर रहा है। एनटीपीसी जैसे देश का सबसे बड़े विद्युत कंपनी का सयंत्र लारा में स्थापित है जो छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा पावर प्लांट बनने की ओर अग्रसर है। पावर प्लांट जैसे बड़े उद्योग में लगभग 95 प्रतिशत इंजीनियर होते है। आज इंजीनियर डे पर एनटीपीसी लारा के परियोजना प्रमुख अनिल कुमार, कार्यकारी निदेशक ने सभी को आज के दिवस की बधाई दी है।  वह कहते हैं कि इंजीनियर का दिमाग समस्याओं को हल करने के व्यावहारिक तरीके ढूंढता है, जबकि आम इंसान का दृष्टिकोण अक्सर सीधा और सरल होता है। दोनों दृष्टिकोणों का संतुलन किसी भी संस्था को संतुलित और व्यवहारिक दिशा देता है। समस्या कितनी भी बड़ी क्यों न हो, उसका समाधान अवश्य होता है। इसी सोच को मैंने अपने जीवन और कार्य में आत्मसात किया है और यही मुझे निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। आने वाले वर्षों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन इंजीनियरिंग क्षेत्र इस विद्या को नई ऊंचाइयों की ओर ले जाएगा। जहां एक ओर ये तकनीकें काम को आसान और तेज़ बनाएंगी, वहीं दूसरी ओर इंजीनियरों के लिए नए कौशल और ज्ञान हासिल करना अनिवार्य हो जाएगा। अनिल कुमार का मानना है कि इंजीनियरिंग शिक्षा केवल मशीनों को समझना नहीं बल्कि समस्याओं को हल करने की क्षमता विकसित करना है। यही दृष्टिकोण आज उनकी जिम्मेदारियों को निभाने में मदद करता है-चाहे वह परियोजना प्रबंधन हो, टीम नेतृत्व हो या नई तकनीक को अपनाना है। जैसे कहावत है इंजीनिरिंग एक सदा बहार क्षेत्र है, यह सही है। इस क्षेत्र में जीवन भर आपको सीखने को मिलेगा, चुनौतियों से घबराना नहीं और हमेशा नैतिक मूल्यों के साथ काम करना है। आज भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई का महत्व कम नहीं हुआ है। बदलते समय में इंजीनियरिंग का स्वरूप जरूर बदला है, परंतु यह अब भी समाज और देश के विकास का सबसे मजबूत स्तंभ है। आधुनिक समाज में इंजीनिरिंग की पढ़ाई सिर्फ नौकरी करने तक सीमित नहीं रह गया है। आर्थिक उदारीकरण और ग्लोबालाइगेशन की दौर में इंजीनिरिंग पढ़ाई के बाद आपके लिए कई क्षेत्र में अवसर खुल जाते है। जिसके बदौलत नौकरी नहीं तो खुद का सयंत्र, व्यवसाय आदि किया जा सकता है। अनिल कुमार का मानना है कि सीखने और करने की प्रक्रिया कभी समाप्त नहीं होती। परिवर्तन संसार का नियम है और इंजीनियरिंग क्षेत्र ऐसा कार्य है जिसमे हमेशा नवाचार की गुंजाइश बनी रहती है और इस पर हमे कार्य करना है। श्री अनिल कुमार जी एक इंजीनियर होने के साथ साथ संगीत में उनका गहरा रुचि है। साथ ही घूमने के शौकीन है। अक्सर वे पश्चात संगीत एवं परिवार के साथ घूमने को ज्यादा महत्व देते हैं।  सामान्य परिवार में जन्मे अनिल कुमार की प्रारंभिक शिक्षा ग्राम के सरकारी स्कूल से हुई। विज्ञान विषयों में गहरी रुचि ने उन्हें इंजीनियरिंग की ओर प्रेरित किया। आगे चलकर उन्होंने उत्तर प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। 1987 में प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से उन्हें एनटीपीसी में नौकरी मिली।  विदित को कि साल 1985 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई काफी कठिन माना जाता था। इंजीनियरिंग कॉलेज बहुत कम थे जो थे वहांपरिवहन व्यवस्था भी सीमित हुआ करती थी इसीलिए इंजीनियरिंग पढ़ाई करने के लिए बड़े शहर में जाना पड़ता था। जिससे बहुत कम बच्चे इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए आगे आते थे। इस प्रकार के सीमित संसाधनों और कठिन प्रतिस्पर्धा के बावजूद अनिल कुमार ने अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखा। पारिवारिक सहयोग और आत्मविश्वास ने उन्हें हर कठिनाई से उबारने में मदद की। इंजीनियरिंग की पढ़ाई की यादगार घटना पर अनिल कुमार बताते हैं कि उस दौरान टीमवर्क और नवाचार की भावना उनके जीवन में गहराई से बसी। बड़े इंजीनियरिंग कार्य में टीम वर्क के साथ अलग-अलग कार्य को सम्पादन करने के लिए टीमों के बीच समन्वय होना भी समय पर कार्य सम्पादन के लिए बहुत जरूरी होता है। जैसे कहावत है "हर एक फ्रेंड जरूरी है" इंजीनियरिंग में टीम वर्क विशेष होता है। एक कठिन चुनौतीपूर्ण कार्य को आसानी से किया जा सकता है। इंजीनियरिंग केवल तकनीकी ज्ञान नहीं बल्कि सामूहिक प्रयास और व्यावहारिक सोच का भी नाम है। qqq <b>कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं : एसई गुंजन शर्मा</b> 46 साल के गुंजन शर्मा छग राज्य बिजली वितरण कंपनी लिमिटेड में अधीक्षण यंत्री हैं। दुर्ग जिले में प्रारंभिक शिक्षा लेकर दुर्ग के ही भिलाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी से 2001 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बने। शुरुआती चार साल एनआईटी रायपुर और शंकराचार्य इंजीनियरिंग कॉलेज में अध्यापन का कार्य किया फिर 2004 में स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड की परीक्षा पास करके सहायक अभियंता बने। 2013 में रायगढ़ में उनकी पोस्टिंग एई के रूप में हुई आज वह अपने अथक परिश्रम के बूते एसई हैं।   अधीक्षण यंत्री गुंजन शर्मा बताते हैं कि कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं होता। जब मैं स्कूल में था तब सोचा था इंजीनियर बनूंगा और जब इंजीनियरिंग कर रहा था तब ठान लिया था कि बिजली विभाग में नौकरी करूंगा। इलेक्ट्रिकल इंजीनियर होने के नाते 46 साल की उम्र में मैं राज्य बिजली वितरण विभाग का अधीक्षण यंत्री हूं। मैं यही चाहता था पर इस चाहत के पीछे मैंने हर समय अथाह और कठोर परिश्रम किया। हर जगह सिर्फ मेहनत किया। लोवर मिडिल क्लास से आता हूं पिता शिक्षक थे और उन्होंने मुझे इंजीनियर बनाया और आज उनके और अपने सपने को जी रहा हूं। मेहनत आज भी जारी है पद से घमंड सर कभी नहीं चढ़ा ।   उन्होंने कहा यदि इंजीनियर बनना है तो पहले यह जांचे की आप सक्षम हैं या नहीं। आजकल इंजीनियरिंग की डिग्री आसानी से मिल जा रही है पर दक्ष इंजीनियर मिलना बहुत मुश्किल हो गया है। फिर आप जिस इंजीनियरिंग कॉलेज में जा रहे हैं यह भी देखें कि वहां की सलेक्शन प्रक्रिया क्या है। बच्चे क्वालिटी एजुकेशन पर ध्यान दें। भीड़ का हिस्सा बनने से बचे। सीखने का जो अवसर मिले उसे सीखें। आज नहीं तो कल यह सीख आपके काम आएगी। सीखने की ललक हमेशा बनी रहनी चाहिए तभी आपका मार्ग प्रशस्त रहेगा। क्योंकि पहले की तुलना में अभी कॉम्पटिशन अधिक बढ़ गया है और इसमें सरवाईव करने के लिए आपको हर फन आना ही होगा अन्यथा आप पीछे छूट जाएंगे।  गुंजन आगे बताते हैं कि समय के साथ बिजली विभाग में बहुत परिवर्तन आया है। उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ी तो उसी अनुपात में सब स्टेशन और फीडर बनाए गए। ऑटोमेशन के कारण अब बिजली बिल घर-घर जाकर बनाया जा रहा है। शिकायत से लेकर बिल भुगतान ऑनलाइन हो रहे हैं। बिजली मीटर स्मार्ट हो गए हैं। कम समय में बिजली बाधा को दूर कर लिया जा रहा है। पहले की तुलना में बिजली विभाग ज्यादा सशक्त हो गया है। जब प्राकृतिक आपदा आती है तो उस समय कुछ स्थलों पर समय लगता है क्योंकि इस आपदा की हानि का आंकलन हम नहीं कर सकते फिर भी कोशिश रहती है कि जल्द से जल्द बिजली बहाल कर सकें।    अंत में उन्होंने कहा कि इंजीनियरिंग में जो सीखा वह ताउम्र याद रहेगा। आज हमारे काम में 20 फीसदी तकनीक तो 80 फीसदी मैनेजेरियल कौशल की जरूरत पड़ती है इसे मैंने इंजीनियरिंग कॉलेज से ही सीखा है। अपने मातहतों के साथ दोस्ताना और गाइड की भूमिका में रहता हूं। सीनियर्स से भी मार्गदर्शन लेता रहता हूं क्योंकि आज जहां मैं हूं कल वहां वो थे तो। नॉन टेक्निकल ऑफिस स्टाफ भी हमारी पूरी मदद करता है। उनके पास अनुभव है। सभी के सहयोग से आगे बढ़ रहा हूं। qqq <b>इंजीनियरिंग ने मुझे पढ़ना, सीखना और जीना सिखाया : बृजेश सिंह क्षत्रिय, निगम आयुक्त</b> जिले में प्रशासनिक सेवाओं में भी इंजीनियरिंग किए हुए अधिकारी मौजूद हैं इनमें से एक हैं रायगढ़ नगर निगम आयुक्त बृजेश सिंह क्षत्रिय। बिलासपुर कोटा के रहने वाले श्री क्षत्रिय ने शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज बिलासपुर के इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकम्युनेशन ब्रांच से 2011 में इंजीनियरिंग की। 2012 पीएससी के माध्यम से राज्य प्रशासनिक सेवा में 2015 में कमीशन्ड हुए। नवंबर 2024 से वे जिले में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।  शहर को स्वच्छ रखना उनकी प्राथमिकता है। इसलिए वह सुबह 6 बजे से 10 बजे तक खुद अपनी निगम की टीम के साथ कार्य करते हैं। परिणाम स्वरूप इस बार बरसात में सड़क पर पानी कम आ रहा। अरसे से संजय कॉम्पेक्स के नाले की सफाई नहीं हुई थी। मिशन मोड में इन्होंने नाले के साथ-साथ नालियों की सफाई और अतिक्रमण भी हटाया वह भी बिना विवाद के। सफाई के कारण ही इस बार रायगढ़ में डेंगू के बहुत कम मामले आए हैं। स्वच्छता रैंकिंग में रायगढ़ निगम ने अच्छा प्रदर्शन किया है। आयुक्त क्षत्रिय के प्रयासों के कारण ही पहली बार केलो नदी की सफाई हुई। 5 पोकलेन मशीनों ने 7 दिन में केलो का उसका खोया गौरव वापस लौटाया। कम समय में शहर की मुख्य 27 सड़कों का निर्माण भी इनकी निगरानी में हुई। सिग्नल चौक के पास नया गार्डन विकसित करना या फिर केलो नदी पर बने पुल पर जाली लगाकर केलो को प्रदूषित होने से रोकना। केलो पुल पर लाइटिंग और नया फुटपाथ बनाना इनकी ही योजनाओं में से एक है।  निगम आयुक्त बृजेश सिंह क्षत्रिय बताते हैं कि इंजीनियर होने के नाते काम करने में आसानी होती है। होमवर्क से काम में गुणवत्ता और टिकाऊपन आता है। कोई तकनीकी जानकारी या फिर इंजीनियरिंग मशीनरी नहीं छूटती। मेरी शिक्षा ने मुझे जो ज्ञान दिया है वह हर दिन हर समय मेरे कार्य में सहयोग करती है।  उन्होंने बताया कि कार्य क्षेत्र में समस्याएं आती हैं और आती रहेंगी मैं उनके हल करने की दिशा में कार्य करता हूं। टालना कभी नहीं सीखा। जो हो सकता है उस पर ऊर्जा लगाता हूं l मेरे काम में मेरी इंजीनियरिंग का बहुत बड़ा योगदान है। इंजीनियरिंग से मैंने पढ़ना और जीना सीखा है। वह हमें भविष्य के लिए तैयार करती है। 4 साल में हम इतने मंझ जाते हैं कि कोई भी काम हो हम उसे करने से कतराते नहीं है उसे अंजाम तक पहुंचा ही देते हैं यह हमें जीवट बनाती है। वर्तमान में इंजीनियरिंग के बारे में वह कहते हैं कि समय के साथ इंजीनियरिंग आसान तो होती जा रही है पर चुनौती यहां भावी इंजीनियर्स के फोकस्ड रहने की है। सोशल और डिजिटल की चंगुल में फंसे युवा को अभी पढ़ाई की ओर मोड़ना बड़ा कार्य है। अगर आपका इंजीनियरिंग में रूझान है और किस विषय में तभी आईये। यह आपकी जिंदगी बदल देगी पर सिर्फ कोर्स के नाम पर आएंगे तो भीड़ में आप खो जाएंगे। सीखने की ललक है तो ही पढ़े। पहले कहा जाता था मेहनत से सब होगा पर अब जब आर्टिफिशियल इंजीनियरिंग, ऑटोमेशन की पहुंच बच्चे-बच्चे तक है ऐसे में आपको मेहनत के साथ दक्षता भी हासिल करनी होगी। qqq <b>एआई और ऑटोमेशन से बदल गया इंजीनियरिंग का स्वरूप : शिक्षाविद् पूनम द्विवेदी</b> यदि आप निपुण और दक्ष हैं तो आपके लिए शहर या फिर राज्य का बंधन नहीं होता आपकी काबिलियत के अनुसार कार्य आपको मिल ही जाता है। यह कहना है 35 वर्षीय शिक्षाविद्  पूनम द्विवेदी का जो फिलहाल रायगढ़ के ओपी जिंदल स्कूल में कंप्यूटर टीचर के साथ ही साथ वहां के सॉफ्टवेयर का भी कार्य करती हैं। पूनम रायगढ़ से ही हैं,  प्रारंभिक शिक्षा कार्मेल स्कूल से लेने का बाद किरोड़ीमल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी से 2011 में आईटी ब्रांच से इंजीनियरिंग की। फिर हैदराबाद में ओरेकल सर्टिफाइड जावा प्रोग्रामर बनने के बाद आईटी फर्म में नौकरी मिली पर पारिवारिक कारणों से वापस रायगढ़ आ गईं। फिर यहां पूनम ने ओपी जिंदल स्कूल में बतौर कंप्यूटर शिक्षक सेवाएं देना शुरू किया। इसी बीच भोपाल से राजीव गांधी प्रौद्योगिकी संस्थान इंजीनियरिंग में मास्टर्स भी किया।  एमटेक और स्कूल इस पर अमूमन लोग कंफ्यूज हो जाते हैं कि इस डिग्री का यहां क्या काम। पर पूनम बताती हैं कि उनका ओपी जिंदल स्कूल इतना बड़ा है कि कंप्यूटर डिपार्मेंट में आईटी प्रोफेशनल और स्पेशलिस्ट की बड़ी टीम हैं और सभी पर करीब 7000 छात्र ,स्टाफ के डेटा बेस और सॉफ्टवेयर को संभालने की जिम्मेदारी होती है। लगभग सारे रिसोर्सेस मौजूद हैं। सॉफ्टवेयर जो अन्य स्कूल खरीदते हैं वह उनका डिपार्मेंट खुद बनाता है। इस डिपार्मेंट पर बच्चों को कंप्यूटर की बेसिक शिक्षा से लेकर एडवांस, एप्लीकेशन और कंप्यूटर लैंगुएज सिखाने की जिम्मेदारी भी है।  बकौल पूनम बड़े शहरों में आईटी कंपनी में बेसिक कंप्यूटर लैंग्वेज के आधार पर जो लोग कार्य करते हैं उससे ज्यादा दक्षता और ज्ञान वाले लोग हमारे यहां हैं। जरूरी नहीं है कि सारे इंजीनियर मल्टीनेशनल कंपनी और आईटी फर्म में नौकरी करें। उनकी जरूरत बड़े संस्थानों में भी होती है इसलिए जिसमें दक्षता है उसके लिए शहर मायने नहीं रखता। ऑटोमेशन पुराना है पर प्रभावकारी है। इसके बाद आए लॉन्ग लैंगुएज मॉड्यूल यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) ने अब इंजीनियरिंग ही नहीं आम जीवन को भी बहुत प्रभावित किया है। एक्चुअल और आर्टिफिशियल में अब अंतर करना मुश्किल हो गया है। बच्चों के पाठ्यक्रम में एआई को शामिल कर उन्हें इसके बारे में समझाया जा रहा है।  पूनम कहती हैं कि नित नए एप्लीकेशन या फिर फोटो, घिबली, गाने जो सोशल मीडिया में हिट हो रहे हैं वह एआई की ही देन है। इस समय बच्चों के साथ पालकों को और अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। आपको अपने बच्चे के भविष्य की पढ़ाई के निर्णय को अब काफी पहले लेना पड़ रहा हैं क्योंकि कंपीटिशन के इस दौर में कोई पीछे नहीं रहना चाहता। शिक्षा आसान हुई है, टूल कई सारे आ गए हैं पर फोकस अभी के छात्रों में कम है। उनके पास मनोरंजन के काफी साधन है और कई बच्चे इसी में अटक के रह जा रहे हैं। ज्यादातर पालक बच्चों को इसी में खुश देख खुद खुश हो जा रहे हैं , यह सही प्रैक्टिस नहीं है। डिजिटल युग में हमारी सतर्कता ही हमें सुरक्षित रखती है फिर क्षेत्र कोई सा भी हो।
हमारे बच्चे
raigarh express
इंजीनियर : विकास की नींव और भविष्य की राह
हमारे बच्चे
raigarh express
उमेश पटेल ने दिया अल्टीमेटम, खाद नहीं मिला तो होगा बड़ा आंदोलन
राजनीति
raigarh express
ग्रामीणों के भेष में अडानी के गुर्गे कर रहे हैं गुंडागर्दी
राजनीति
raigarh express
इस्कॉन प्रचार केंद्र रायगढ़ ने धूमधाम से मनाया राधाष्टमी महोत्सव
आसपास
इस्कॉन प्रचार केंद्र रायगढ़ ने धूमधाम से मनाया राधाष्टमी महोत्सव
400 भक्तों ने 2 घंटे तक किया राधा माधव का महाअभिषेक,भोर में मंगला आरती के बाद दोपहर तक हुए विविध आयोजन
जन्माष्टमी के बाद इस्कॉन रायगढ़ का दूसरा बड़ा आयोजन राधा अष्टमी रविवार को
राधा रानी के अवतरण दिवस पर इस्कॉन रायगढ़ के कोलता भवन में होंगे कई धार्मिक अनुष्ठान
अडानी के गुर्गों पर कार्रवाई करने में पुलिस के हाथपांव फूले
अडानी के गुर्गों ने पत्रकारों को जान से मारने की दी थी धमकी, फर्जी ग्रामसभा कराकर खदान खोलने पर आमादा अडानी
रायगढ़ इस्कॉन में जन्माष्टमी: 51 प्रकार के द्रव्य से हुआ राधाकृष्ण का महाभिषेक, गूंजा हरे कृष्ण मंत्र
8 घंटे लगातार भजनों पर नाचते रहे भक्त, सैकड़ों लोगों ने किया राधे कृष्ण का महाअभिषेक
उमेश पटेल ने दिया अल्टीमेटम, खाद नहीं मिला तो होगा बड़ा आंदोलन
उमेश पटेल के नेतृत्व में खाद संकट पर खरसिया कांग्रेस का हल्ला बोल, हजारों किसानों के साथ घेरा तहसील
ग्रामीणों के भेष में अडानी के गुर्गे कर रहे हैं गुंडागर्दी
अडानी के गुर्गों पर कार्रवाई से डर गई रायगढ़ पुलिस, पत्रकारों को धमकाने और भूपेश बघेल का रास्ता रोकने वाले अडानी के गुर्गे एक ही
उमेश पटेल के लगातार प्रयासों से खरसिया ओवरब्रिज का रास्ता साफ, वित्त विभाग ने दी हरी झंडी
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जनवरी 2021 में इस ओवरब्रिज की थी घोषणा
पत्रकारों को धमकाने वाले अडानी कंपनी के गुर्गों की होगी मुख्यमंत्री से शिकायत
पत्रकारों को जान से मारने की धमकी देने वालों की तुरंत हो गिरफ्तारी : प्रेस क्लब अध्यक्ष हेमंत थवाईत
नाली पर गिट्टी-बालू रखने से हुआ जलभराव, निगम की कड़ी कार्रवाई
संस्कार फ्लेक्स पर ₹20,000 का जुर्माना, गिट्टी-बालू जप्त , अब स्थिति सामान्य
चक्रधर नगर पोल्ट्री फार्म में मिला बर्ड फ्लू का केस
कलेक्टर ने देर रात अधिकारियों की आपातकालीन बैठक लेकर स्थिति नियंत्रित करने बनाई रणनीति
किसी भी आपात स्थिति से निबटने स्वास्थ्य अमला पूरी तरह से तैयार: सीएमएचओ डॉ. केशरी
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में प्रशासन का स्वास्थ्य सेवाएँ पहुंचाने पर जोर*
रायगढ़ में मूसलाधार बारिश की संभावना
बारिश से महानदी में बढ़ा जलस्तर, रायगढ़ जिला प्रशासन अलर्ट
राष्ट्र के निर्माता: कल, आज और कल के रायगढ़ के इंजीनियर
देश में हर वर्ष 15 सितम्बर को अभियंता दिवस मनाया जाता है। यह दिन भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है, जिन्होंने अपने अद्वितीय कौशल और दृष्टिकोण से राष्ट्र के औद्योगिक और तकनीकी विकास को नई दिशा दी। अभियंता केवल मशीनों और संरचनाओं के निर्माता ही नहीं, बल्कि समाज की प्रगति के आधार स्तंभ हैं। पुल, सड़क, ऊर्जा, सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवाएँ और अंतरिक्ष अनुसंधान हर क्षेत्र में उनकी मेहनत और रचनात्मकता झलकती है। पिछले वर्षों में भारत और रायगढ़ जिले ने भी ने औद्योगिक क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया और हरित ऊर्जा जैसी पहलों ने इंजीनियरों को बेहतर गुणवत्ता का उत्पादन और नवीन समाधान प्रस्तुत करने का अवसर दिया है। आज भारत वैश्विक स्तर पर मैन्युफैक्चरिंग और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उभरती हुई शक्ति है। अभियंता दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि अभियंताओं की दूरदृष्टि और परिश्रम ही आधुनिक भारत के निर्माण की सच्ची नींव है। आज के इस विशेष लेख में हम अपने अंचल के कुछ इंजीनियर्स से हुई बातें साझा करेंगे, qqq <b>समस्या कितनी बड़ी क्यों न हो समाधान अवश्य होता है : अनिल कुमार, ईडी एनटीपीसी लारा</b> रायगढ़ छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक राजधानी के रूप में जाना जाता है जो विकास से राह पर रायगढ़ तेजी से विकास कर रहा है। एनटीपीसी जैसे देश का सबसे बड़े विद्युत कंपनी का सयंत्र लारा में स्थापित है जो छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा पावर प्लांट बनने की ओर अग्रसर है। पावर प्लांट जैसे बड़े उद्योग में लगभग 95 प्रतिशत इंजीनियर होते है। आज इंजीनियर डे पर एनटीपीसी लारा के परियोजना प्रमुख अनिल कुमार, कार्यकारी निदेशक ने सभी को आज के दिवस की बधाई दी है।  वह कहते हैं कि इंजीनियर का दिमाग समस्याओं को हल करने के व्यावहारिक तरीके ढूंढता है, जबकि आम इंसान का दृष्टिकोण अक्सर सीधा और सरल होता है। दोनों दृष्टिकोणों का संतुलन किसी भी संस्था को संतुलित और व्यवहारिक दिशा देता है। समस्या कितनी भी बड़ी क्यों न हो, उसका समाधान अवश्य होता है। इसी सोच को मैंने अपने जीवन और कार्य में आत्मसात किया है और यही मुझे निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। आने वाले वर्षों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन इंजीनियरिंग क्षेत्र इस विद्या को नई ऊंचाइयों की ओर ले जाएगा। जहां एक ओर ये तकनीकें काम को आसान और तेज़ बनाएंगी, वहीं दूसरी ओर इंजीनियरों के लिए नए कौशल और ज्ञान हासिल करना अनिवार्य हो जाएगा। अनिल कुमार का मानना है कि इंजीनियरिंग शिक्षा केवल मशीनों को समझना नहीं बल्कि समस्याओं को हल करने की क्षमता विकसित करना है। यही दृष्टिकोण आज उनकी जिम्मेदारियों को निभाने में मदद करता है-चाहे वह परियोजना प्रबंधन हो, टीम नेतृत्व हो या नई तकनीक को अपनाना है। जैसे कहावत है इंजीनिरिंग एक सदा बहार क्षेत्र है, यह सही है। इस क्षेत्र में जीवन भर आपको सीखने को मिलेगा, चुनौतियों से घबराना नहीं और हमेशा नैतिक मूल्यों के साथ काम करना है। आज भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई का महत्व कम नहीं हुआ है। बदलते समय में इंजीनियरिंग का स्वरूप जरूर बदला है, परंतु यह अब भी समाज और देश के विकास का सबसे मजबूत स्तंभ है। आधुनिक समाज में इंजीनिरिंग की पढ़ाई सिर्फ नौकरी करने तक सीमित नहीं रह गया है। आर्थिक उदारीकरण और ग्लोबालाइगेशन की दौर में इंजीनिरिंग पढ़ाई के बाद आपके लिए कई क्षेत्र में अवसर खुल जाते है। जिसके बदौलत नौकरी नहीं तो खुद का सयंत्र, व्यवसाय आदि किया जा सकता है। अनिल कुमार का मानना है कि सीखने और करने की प्रक्रिया कभी समाप्त नहीं होती। परिवर्तन संसार का नियम है और इंजीनियरिंग क्षेत्र ऐसा कार्य है जिसमे हमेशा नवाचार की गुंजाइश बनी रहती है और इस पर हमे कार्य करना है। श्री अनिल कुमार जी एक इंजीनियर होने के साथ साथ संगीत में उनका गहरा रुचि है। साथ ही घूमने के शौकीन है। अक्सर वे पश्चात संगीत एवं परिवार के साथ घूमने को ज्यादा महत्व देते हैं।  सामान्य परिवार में जन्मे अनिल कुमार की प्रारंभिक शिक्षा ग्राम के सरकारी स्कूल से हुई। विज्ञान विषयों में गहरी रुचि ने उन्हें इंजीनियरिंग की ओर प्रेरित किया। आगे चलकर उन्होंने उत्तर प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। 1987 में प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से उन्हें एनटीपीसी में नौकरी मिली।  विदित को कि साल 1985 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई काफी कठिन माना जाता था। इंजीनियरिंग कॉलेज बहुत कम थे जो थे वहांपरिवहन व्यवस्था भी सीमित हुआ करती थी इसीलिए इंजीनियरिंग पढ़ाई करने के लिए बड़े शहर में जाना पड़ता था। जिससे बहुत कम बच्चे इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए आगे आते थे। इस प्रकार के सीमित संसाधनों और कठिन प्रतिस्पर्धा के बावजूद अनिल कुमार ने अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखा। पारिवारिक सहयोग और आत्मविश्वास ने उन्हें हर कठिनाई से उबारने में मदद की। इंजीनियरिंग की पढ़ाई की यादगार घटना पर अनिल कुमार बताते हैं कि उस दौरान टीमवर्क और नवाचार की भावना उनके जीवन में गहराई से बसी। बड़े इंजीनियरिंग कार्य में टीम वर्क के साथ अलग-अलग कार्य को सम्पादन करने के लिए टीमों के बीच समन्वय होना भी समय पर कार्य सम्पादन के लिए बहुत जरूरी होता है। जैसे कहावत है "हर एक फ्रेंड जरूरी है" इंजीनियरिंग में टीम वर्क विशेष होता है। एक कठिन चुनौतीपूर्ण कार्य को आसानी से किया जा सकता है। इंजीनियरिंग केवल तकनीकी ज्ञान नहीं बल्कि सामूहिक प्रयास और व्यावहारिक सोच का भी नाम है। qqq <b>कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं : एसई गुंजन शर्मा</b> 46 साल के गुंजन शर्मा छग राज्य बिजली वितरण कंपनी लिमिटेड में अधीक्षण यंत्री हैं। दुर्ग जिले में प्रारंभिक शिक्षा लेकर दुर्ग के ही भिलाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी से 2001 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बने। शुरुआती चार साल एनआईटी रायपुर और शंकराचार्य इंजीनियरिंग कॉलेज में अध्यापन का कार्य किया फिर 2004 में स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड की परीक्षा पास करके सहायक अभियंता बने। 2013 में रायगढ़ में उनकी पोस्टिंग एई के रूप में हुई आज वह अपने अथक परिश्रम के बूते एसई हैं।   अधीक्षण यंत्री गुंजन शर्मा बताते हैं कि कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं होता। जब मैं स्कूल में था तब सोचा था इंजीनियर बनूंगा और जब इंजीनियरिंग कर रहा था तब ठान लिया था कि बिजली विभाग में नौकरी करूंगा। इलेक्ट्रिकल इंजीनियर होने के नाते 46 साल की उम्र में मैं राज्य बिजली वितरण विभाग का अधीक्षण यंत्री हूं। मैं यही चाहता था पर इस चाहत के पीछे मैंने हर समय अथाह और कठोर परिश्रम किया। हर जगह सिर्फ मेहनत किया। लोवर मिडिल क्लास से आता हूं पिता शिक्षक थे और उन्होंने मुझे इंजीनियर बनाया और आज उनके और अपने सपने को जी रहा हूं। मेहनत आज भी जारी है पद से घमंड सर कभी नहीं चढ़ा ।   उन्होंने कहा यदि इंजीनियर बनना है तो पहले यह जांचे की आप सक्षम हैं या नहीं। आजकल इंजीनियरिंग की डिग्री आसानी से मिल जा रही है पर दक्ष इंजीनियर मिलना बहुत मुश्किल हो गया है। फिर आप जिस इंजीनियरिंग कॉलेज में जा रहे हैं यह भी देखें कि वहां की सलेक्शन प्रक्रिया क्या है। बच्चे क्वालिटी एजुकेशन पर ध्यान दें। भीड़ का हिस्सा बनने से बचे। सीखने का जो अवसर मिले उसे सीखें। आज नहीं तो कल यह सीख आपके काम आएगी। सीखने की ललक हमेशा बनी रहनी चाहिए तभी आपका मार्ग प्रशस्त रहेगा। क्योंकि पहले की तुलना में अभी कॉम्पटिशन अधिक बढ़ गया है और इसमें सरवाईव करने के लिए आपको हर फन आना ही होगा अन्यथा आप पीछे छूट जाएंगे।  गुंजन आगे बताते हैं कि समय के साथ बिजली विभाग में बहुत परिवर्तन आया है। उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ी तो उसी अनुपात में सब स्टेशन और फीडर बनाए गए। ऑटोमेशन के कारण अब बिजली बिल घर-घर जाकर बनाया जा रहा है। शिकायत से लेकर बिल भुगतान ऑनलाइन हो रहे हैं। बिजली मीटर स्मार्ट हो गए हैं। कम समय में बिजली बाधा को दूर कर लिया जा रहा है। पहले की तुलना में बिजली विभाग ज्यादा सशक्त हो गया है। जब प्राकृतिक आपदा आती है तो उस समय कुछ स्थलों पर समय लगता है क्योंकि इस आपदा की हानि का आंकलन हम नहीं कर सकते फिर भी कोशिश रहती है कि जल्द से जल्द बिजली बहाल कर सकें।    अंत में उन्होंने कहा कि इंजीनियरिंग में जो सीखा वह ताउम्र याद रहेगा। आज हमारे काम में 20 फीसदी तकनीक तो 80 फीसदी मैनेजेरियल कौशल की जरूरत पड़ती है इसे मैंने इंजीनियरिंग कॉलेज से ही सीखा है। अपने मातहतों के साथ दोस्ताना और गाइड की भूमिका में रहता हूं। सीनियर्स से भी मार्गदर्शन लेता रहता हूं क्योंकि आज जहां मैं हूं कल वहां वो थे तो। नॉन टेक्निकल ऑफिस स्टाफ भी हमारी पूरी मदद करता है। उनके पास अनुभव है। सभी के सहयोग से आगे बढ़ रहा हूं। qqq <b>इंजीनियरिंग ने मुझे पढ़ना, सीखना और जीना सिखाया : बृजेश सिंह क्षत्रिय, निगम आयुक्त</b> जिले में प्रशासनिक सेवाओं में भी इंजीनियरिंग किए हुए अधिकारी मौजूद हैं इनमें से एक हैं रायगढ़ नगर निगम आयुक्त बृजेश सिंह क्षत्रिय। बिलासपुर कोटा के रहने वाले श्री क्षत्रिय ने शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज बिलासपुर के इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकम्युनेशन ब्रांच से 2011 में इंजीनियरिंग की। 2012 पीएससी के माध्यम से राज्य प्रशासनिक सेवा में 2015 में कमीशन्ड हुए। नवंबर 2024 से वे जिले में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।  शहर को स्वच्छ रखना उनकी प्राथमिकता है। इसलिए वह सुबह 6 बजे से 10 बजे तक खुद अपनी निगम की टीम के साथ कार्य करते हैं। परिणाम स्वरूप इस बार बरसात में सड़क पर पानी कम आ रहा। अरसे से संजय कॉम्पेक्स के नाले की सफाई नहीं हुई थी। मिशन मोड में इन्होंने नाले के साथ-साथ नालियों की सफाई और अतिक्रमण भी हटाया वह भी बिना विवाद के। सफाई के कारण ही इस बार रायगढ़ में डेंगू के बहुत कम मामले आए हैं। स्वच्छता रैंकिंग में रायगढ़ निगम ने अच्छा प्रदर्शन किया है। आयुक्त क्षत्रिय के प्रयासों के कारण ही पहली बार केलो नदी की सफाई हुई। 5 पोकलेन मशीनों ने 7 दिन में केलो का उसका खोया गौरव वापस लौटाया। कम समय में शहर की मुख्य 27 सड़कों का निर्माण भी इनकी निगरानी में हुई। सिग्नल चौक के पास नया गार्डन विकसित करना या फिर केलो नदी पर बने पुल पर जाली लगाकर केलो को प्रदूषित होने से रोकना। केलो पुल पर लाइटिंग और नया फुटपाथ बनाना इनकी ही योजनाओं में से एक है।  निगम आयुक्त बृजेश सिंह क्षत्रिय बताते हैं कि इंजीनियर होने के नाते काम करने में आसानी होती है। होमवर्क से काम में गुणवत्ता और टिकाऊपन आता है। कोई तकनीकी जानकारी या फिर इंजीनियरिंग मशीनरी नहीं छूटती। मेरी शिक्षा ने मुझे जो ज्ञान दिया है वह हर दिन हर समय मेरे कार्य में सहयोग करती है।  उन्होंने बताया कि कार्य क्षेत्र में समस्याएं आती हैं और आती रहेंगी मैं उनके हल करने की दिशा में कार्य करता हूं। टालना कभी नहीं सीखा। जो हो सकता है उस पर ऊर्जा लगाता हूं l मेरे काम में मेरी इंजीनियरिंग का बहुत बड़ा योगदान है। इंजीनियरिंग से मैंने पढ़ना और जीना सीखा है। वह हमें भविष्य के लिए तैयार करती है। 4 साल में हम इतने मंझ जाते हैं कि कोई भी काम हो हम उसे करने से कतराते नहीं है उसे अंजाम तक पहुंचा ही देते हैं यह हमें जीवट बनाती है। वर्तमान में इंजीनियरिंग के बारे में वह कहते हैं कि समय के साथ इंजीनियरिंग आसान तो होती जा रही है पर चुनौती यहां भावी इंजीनियर्स के फोकस्ड रहने की है। सोशल और डिजिटल की चंगुल में फंसे युवा को अभी पढ़ाई की ओर मोड़ना बड़ा कार्य है। अगर आपका इंजीनियरिंग में रूझान है और किस विषय में तभी आईये। यह आपकी जिंदगी बदल देगी पर सिर्फ कोर्स के नाम पर आएंगे तो भीड़ में आप खो जाएंगे। सीखने की ललक है तो ही पढ़े। पहले कहा जाता था मेहनत से सब होगा पर अब जब आर्टिफिशियल इंजीनियरिंग, ऑटोमेशन की पहुंच बच्चे-बच्चे तक है ऐसे में आपको मेहनत के साथ दक्षता भी हासिल करनी होगी। qqq <b>एआई और ऑटोमेशन से बदल गया इंजीनियरिंग का स्वरूप : शिक्षाविद् पूनम द्विवेदी</b> यदि आप निपुण और दक्ष हैं तो आपके लिए शहर या फिर राज्य का बंधन नहीं होता आपकी काबिलियत के अनुसार कार्य आपको मिल ही जाता है। यह कहना है 35 वर्षीय शिक्षाविद्  पूनम द्विवेदी का जो फिलहाल रायगढ़ के ओपी जिंदल स्कूल में कंप्यूटर टीचर के साथ ही साथ वहां के सॉफ्टवेयर का भी कार्य करती हैं। पूनम रायगढ़ से ही हैं,  प्रारंभिक शिक्षा कार्मेल स्कूल से लेने का बाद किरोड़ीमल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी से 2011 में आईटी ब्रांच से इंजीनियरिंग की। फिर हैदराबाद में ओरेकल सर्टिफाइड जावा प्रोग्रामर बनने के बाद आईटी फर्म में नौकरी मिली पर पारिवारिक कारणों से वापस रायगढ़ आ गईं। फिर यहां पूनम ने ओपी जिंदल स्कूल में बतौर कंप्यूटर शिक्षक सेवाएं देना शुरू किया। इसी बीच भोपाल से राजीव गांधी प्रौद्योगिकी संस्थान इंजीनियरिंग में मास्टर्स भी किया।  एमटेक और स्कूल इस पर अमूमन लोग कंफ्यूज हो जाते हैं कि इस डिग्री का यहां क्या काम। पर पूनम बताती हैं कि उनका ओपी जिंदल स्कूल इतना बड़ा है कि कंप्यूटर डिपार्मेंट में आईटी प्रोफेशनल और स्पेशलिस्ट की बड़ी टीम हैं और सभी पर करीब 7000 छात्र ,स्टाफ के डेटा बेस और सॉफ्टवेयर को संभालने की जिम्मेदारी होती है। लगभग सारे रिसोर्सेस मौजूद हैं। सॉफ्टवेयर जो अन्य स्कूल खरीदते हैं वह उनका डिपार्मेंट खुद बनाता है। इस डिपार्मेंट पर बच्चों को कंप्यूटर की बेसिक शिक्षा से लेकर एडवांस, एप्लीकेशन और कंप्यूटर लैंगुएज सिखाने की जिम्मेदारी भी है।  बकौल पूनम बड़े शहरों में आईटी कंपनी में बेसिक कंप्यूटर लैंग्वेज के आधार पर जो लोग कार्य करते हैं उससे ज्यादा दक्षता और ज्ञान वाले लोग हमारे यहां हैं। जरूरी नहीं है कि सारे इंजीनियर मल्टीनेशनल कंपनी और आईटी फर्म में नौकरी करें। उनकी जरूरत बड़े संस्थानों में भी होती है इसलिए जिसमें दक्षता है उसके लिए शहर मायने नहीं रखता। ऑटोमेशन पुराना है पर प्रभावकारी है। इसके बाद आए लॉन्ग लैंगुएज मॉड्यूल यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) ने अब इंजीनियरिंग ही नहीं आम जीवन को भी बहुत प्रभावित किया है। एक्चुअल और आर्टिफिशियल में अब अंतर करना मुश्किल हो गया है। बच्चों के पाठ्यक्रम में एआई को शामिल कर उन्हें इसके बारे में समझाया जा रहा है।  पूनम कहती हैं कि नित नए एप्लीकेशन या फिर फोटो, घिबली, गाने जो सोशल मीडिया में हिट हो रहे हैं वह एआई की ही देन है। इस समय बच्चों के साथ पालकों को और अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। आपको अपने बच्चे के भविष्य की पढ़ाई के निर्णय को अब काफी पहले लेना पड़ रहा हैं क्योंकि कंपीटिशन के इस दौर में कोई पीछे नहीं रहना चाहता। शिक्षा आसान हुई है, टूल कई सारे आ गए हैं पर फोकस अभी के छात्रों में कम है। उनके पास मनोरंजन के काफी साधन है और कई बच्चे इसी में अटक के रह जा रहे हैं। ज्यादातर पालक बच्चों को इसी में खुश देख खुद खुश हो जा रहे हैं , यह सही प्रैक्टिस नहीं है। डिजिटल युग में हमारी सतर्कता ही हमें सुरक्षित रखती है फिर क्षेत्र कोई सा भी हो।
इंजीनियर : विकास की नींव और भविष्य की राह
​15 सितंबर का दिन, जब वंदे भारत एक्सप्रेस नई पटरियों पर तीव्र गति से दौड़ती है, जब एक क्लिक पर यूपीआई के माध्यम से करोड़ों का लेन-देन सेकंडों में हो जाता है, और जब चिनाब नदी के ऊपर बना दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल बादलों को छूता हुआ प्रतीत होता है, तो हम आधुनिक भारत की प्रगति के इन मूर्त प्रतीकों को देखते हैं। ये सभी उपलब्धियां है भारतीय इंजीनियरों की, उन राष्ट्र-निर्माताओं की जिन्होंने विज्ञान के सिद्धांतों को समाज की सेवा में ढाला है। आज का दिन हमें उस महापुरुष की याद दिलाता है, जिनके सम्मान में यह दिन समर्पित है, सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया। भारत सरकार ने 1968 में उनके जन्मदिन को अभियंता दिवस के रूप में घोषित किया, ताकि उनकी असाधारण विरासत को हमेशा याद रखा जा सके। जानिए वर्तमान में इंजीनियर के लिए चुनौती और इंजीनियरिंग में परिवर्तनों को एक्सपर्ट्स द्वारा qqq <b>तकनीक से काम हुआ आसान :  विनोद कुमार मिंज, ईई, पीएमजीएसवाय</b> इंजीनियरिंग ने मुझे अनुशासित होना सिखाया है। अपनी पढ़ाई के बूते आज मैं यहां पहुंचा हूं। वर्तमान में मैं मैनेजेरियल पद पर हूं पर इसे निर्वाह करने की बेसिक ट्रेनिंग तो सालों पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई ने दी है। अलग-अलग विचार और क्षमता के लोगों के साथ कैसे कार्य करना है यह मैंने पढ़ाई के दौरान सीखा। डाउनलाइन को साथ लेकर अपलाइन की मदद से मैं कार्य करता हूं। यह कहना है प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के कार्यपालन अभियंता विनोद कुमार मिंज का। वह जितने सरल और सहज हैं उतने ही अपने कार्य के प्रति गंभीर। 50 वर्षीय विनोद कुनकुरी के रहने वाले हैं और वहीं से प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद साल 2000 में शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय बिलासपुर से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री ली। फिर इसी साल शुरू हुए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में बतौर कंसलटेंट जुड़ गए और गांवों को मुख्य सड़क से जोड़ने के कार्य में आज तक लगे हुए हैं। 2008 में पीएससी क्लीयर कर सहायक अभियंता बने मूल विभाग ग्रामीण यांत्रिकी सेवा (आरईएस) मिला पर प्रतिनियुक्ति पर पीएमजीएसवाय में हैं। गांव का ही व्यक्ति जब गांव के लिए काम करे तो इससे असरदार और कुछ नहीं होता। ईई विनोद को अपने कार्य में जिम्मेदारी के साथ आनंद भी आता है। वह कहते हैं कि इंजीनियरिंग के बाद मुझे गांव के लिए कुछ करना था जो कि इस जिम्मेदारी से पूरी कर रहा हूं। सीनियर्स के मार्गदर्शन, जूनियर्स के सहयोग से हमारी टीम लगातार बेहतर कार्य कर रही है। समय के साथ निर्माण कार्यों में मशीनों का उपयोग अधिक और टेक्नालॉजी भी डेवलप हुई है इससे कार्य आसान हो गया है। क्यूरिंग में समय का कम लगना, बड़ी मिक्शचर मशीनें और सर्वे के नए तकनीक से समय की बचत तो होती ही है काम भी बेहतर होता है। पहले लोग काली मिट्टी में सड़क बनाने से डरते थे अब हम उन्हें मिट्टी परीक्षण की रिपोर्ट दिखाकर उन्हें अपने भरोसे में लेकर आगे कार्य करते हैं। अब तो हम प्लास्टिक के उपयोग से भी टिकाऊ सड़क बना रहे हैं। बरसात में जो गांव मुख्य धारा से कट जाते थे आज सभी सदैव बराबर पीएमजीएसवाय की पुल-पुलिया-सड़कों से जुड़े रहते हैं। श्री मिंज बताते हैं कि जब कभी दूरस्थ ग्राम जाते हैं तो कोई न कोई सड़क, पुल-पुलिया हमें पीएमजीएसवाय की मिल ही जाती है। जब किसी गांव में पहली बार सड़क पहुंचती है तो उस गांव के लिए परिवर्तनीय घटना हो जाती है। लोंगों को मुख्य धारा में सड़क के माध्यम से जोड़ने के बाद जो आनंद आता है उसकी कोई सीमा नहीं होती। कार्य के दबाव में हम कई दिनों तक घर से दूर रहते हैं, छुट्टी तक नहीं मिलती पर जब लोगों के चेहरों पर खुशी देखते हैं तो सारे तनाव खत्म हो जाते हैं।  भावी इंजीनियर सनद रहे हैं आपके पास सीखने के लिए सबसे ज्यादा टूल हैं लेकिन आप सीख क्या रहे हैं यह आप पर निर्भर करता है। मेहनत का कोई शार्ट कट नहीं होता। जितना उसमें लगना है लगेगा। जिम्मेदारी लेने से कतराएं नहीं यही आपको बड़ा बनाएगी। कॉलेज के दिन अच्छे होते हैं यही हमारा मार्ग प्रशस्त करते हैं पर अब कॉम्पिटिशन बहुत बढ़ गया है इसी को मद्देनजर रखते हुए आप आगे बढ़ें।    qqq <b>गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं : अमित कश्यप, ईई पीडब्लूडी</b> जिले के सबसे सीनियर कार्यपालन अभियंता अमित कश्यप अपनी साफगोई और स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते हैं। वो लाइमलाइट से परे अपने विभागीय कार्य में इतने रमे रहते हैं कि उन्हें और किसी से काई अर्थ नहीं। लोक निर्माण विभाग में 18 साल से अपनी निर्विरोध छवि और गुणवत्तायुक्त कार्य करवाने के लिए उनकी विभाग में हनक है। गृह जिला बिलासपुर के रहने वाले 49 वर्षीयी अमित के पिता और दो भाई भी इंजीनियर हैं। उन्होंने 1998 में बिलासपुर के शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय से सिविल इंजीनियर की डिग्री ली। फिर करीब 5 साल इसी कॉलेज में अध्यापन का कार्य किया। 2003 में सेंट्रल पीडब्ल्यूडी की परीक्षा पास कर पश्चिम बंगाल के बालूर घाट के पास बांग्लादेश सीमा के पास पोस्टिंग मिली। 5 साल यहां कार्य करने के बाद 2008 में पीएससी के माध्यम से सहायक अभियंता की नौकरी लगी। पूर्व में जांजगीर-चांपा एवं रायपुर में पदस्थ  रहे । नवंबर 2023 में शासन ने रायगढ़ पदस्थ किया। श्री कश्यप कहते हैं कि निर्माण कार्यों में मशीनों एवं नए तकनीक के आने से काम सटीक और समय से होने तो लगे हैं व कार्य की गुणवत्ता की भी मानीटरिंग में सुविधा हुई है।  विभाग को आंकलन करने में आसानी होती है। हमारा विभाग सदैव कार्य करता रहता है। सड़क, भवन, पुल,पुलिया हम बनाते हैं यानी लोगों की नजरों के सामने रहते हैं। क्वालिटी संबधी किसी भी समस्या के लिए लोग सीधे विभाग को दोषी मानते हैं। पर ऐसा नहीं है। हमें समझना पड़ेगा कि कोई भी इंजीनियर कार्य के गुणवत्ता से समझौता नहीं करता है। कभी कभी निर्माण कार्य में विभिन्न कारणों से कमी परिलक्षित होती है।जैसे  सड़क पर ओवरलोड गाड़ियों का चलना,  सड़क के किनारे लोग कब्जा करके प्योंठा या सीढ़ी बना लेंगे तो पानी जाम होगा सड़क के बीच में आएगा तो सड़क टूटेगी ,साथ  ही कुछ ठेकेदार की लापरवाही भी कारण है। कुछ एक ठेकेदार की बदमाशी की वजह से पूरा विभाग लोगों की नजर में बुरा बन जाता है। श्री कश्यप आगे बताते हैं कि आजकल इंजीनियरिंग काॅलेज बहुत खुल गए , लेकिन संसाधन एवं फेकल्टी की कमी के कारण छात्र लाखों खर्च के बाद भी गुणवत्तायुक्त  शिक्षा से वंचित  हो रहा। शिक्षा प्रैक्टिकल बेस्ट होनी चाहिए ताकि छात्र में विषय के प्रति उत्सुकता बनी रही। हमारे समय में एमपी सीजी एक था तो दोनों को मिलाकर 13 इंजीनिरिंग कॉलेज और 2000 सीटें हुआ करती थी जिसमें क्रीम बच्चे ही जा पाते और अच्छे इंजीनियर बनकर निकलते। आज बच्चों और उनके पालकों को क्वालिटी एजुकेशन पर फोकस करना होगा।    अंत में ईई अमित कश्यप ने बताया कि जो कार्य वह कर रहे हैं उनसे पहले कोई और कर रहा था और आगे कोई और करेगा। मैं चाहता हूं कि मैं ऐसा कार्य करूं कि जिसे मेरे जाने के बाद भी लोग याद रखें कि इसे मैंने बनवाया था। 17 साल की नौकरी में मैंने आज तक गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं किया। qqq <b>काम होंगे बस लगन होनी चाहिए :  मनीष कुमार गुप्ता, ईई, केलो परियोजना</b> 47 वर्षीय मनीष कुमार गुप्ता केलो परियोजना के कार्यपालन अभियंता हैं। जो हंडी चौक रायगढ़ से ताल्लुक रखते हैं। 1996 में रायगढ़ पॉलीटेक्निक से सिविल ब्रांच में डिप्लोमा करने के बाद भोपाल के मौलाना अब्दुल इंजीनियरिंग कॉलेज से 1999 में सिविल इंजीनियर की डिग्री ली। फिर पैतृक व्यवसाय को संभाला जहां उनका मन नहीं लगा तो 2008 में पीएससी क्लीयर करके जल संसाधन विभाग में असिस्टेंट इंजीनियर बने। यहां उनका कार्य उम्दा है वह विभाग के बेहतरीन इंजीनियर्स में से एक हैं। इसलिए उन्हें इस वक्त रायगढ़ में संचालित केलो परियोजना का कार्यपालन अभियंता बनाकर राज्य शासन ने भेजा है। मनीष कहते हैं कि विभाग में कार्य अच्छे कर पाने का कारण है कि मैं थोरोटिकल अप्रोच रखता हूं। यानी काम का प्रयास करते रहना है, नियम स्वत: सहयोगी रहते हैं। काम होंगे बस लगन होनी चाहिए। यह जुझारूपन हमारी इंजीनियरिंग की ही देन है कि नैवर गिव अप, कीप इट अप। मैं खुशनसीब था कि जहां भी मैंने पढ़ाई की वहां मुझे शिक्षक बेहतरीन मिले फिर वह रायगढ़ का पॉलीटेक्निक हो या भोपाल का एमएसीटी। तब रिसोर्स कम थे जो ज्ञान अर्जित करना होता था वह किताबें थी, टैक्स बुक के अलावे रेफरेंस बुक। आज भी हमारे जेहन में हमारी पढ़ाई है क्योंकि उस समय दिमाग भटकाने के लिए कम ही चीजें थी। आज अच्छी पढ़ाई करना एक तपस्या करने के जैसा है। आज के समय में बच्चे सोच विचार के इंजीनियरिंग में और जो आए विषय चुनने में अपनी सुनना कि आपको किसमें रूचि है। विषय के कोर में ध्यान दें और तल्लीनता से पढ़ाई जारी रखें। मनीष इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि पुराने स्टाफ चलती फिरती किताब हैं मैं जब कहीं भी उलझ जाता हूं तो ये तुरंत हल बता देते हैं। संभवत:  ये तकनीकी पढ़ाई नहीं किये होते हैं फिर भी अनुभव उनका अच्छे से अच्छे इंजीनियर के ज्ञान के परास्त कर देता है। यह होता है अनुभव जिसे आप से कोई नहीं छीन सकता। शासकीय विभाग में सामंजस्य बैठाना एक कला है जिसके लिए उच्च अधिकारियों से संवाद एवं मार्गदर्शन आवश्यक है।   अंत में मनीष कहते हैं 90 के दशक में रायगढ़ जैसी जगह से निकलकर इंजीनियरिंग करने जाना वह भी शिशु मंदिर के छात्र के लिए शुरू में थोड़ा अजीब होता था पर जैसे ही मैंने वहां प्रवेश लिया और वहां से इंजीनियर बनकर लौटा मेरा आत्मविश्वास बढ़ चुका था। जीवन के प्रति मेरा नजरिया, मेरी सोच और काबलियत सभी बदल चुकी थी। यह था इंजीनियरिंग का कमाल जिसने मेरी दुनिया बदल दी। आज हम लोगों से ज्यादा अवसर नई पीढ़ी के पास है बस वह अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाए तो उनके लिए नामुमकिन कुछ भी नहीं। qqq <b>हर चीज में इंजीनियरिंग है समझ कर देखिए : प्रोफेसर रितेश शर्मा</b> टेक्निकल सिद्धांत का उपयोग जीवन की किसी समस्या के बेहतर समाधान के लिए किया जा सकता है यह घर के कपड़े जल्दी सुखाने से लेकर ऑफिस के काम की री रूटिंग के लिए किया जा सकता है। पानी या कोई भी पदार्थ की तरह जीवन भी स्टेबिलिटी चाहता है। न्यूटन का तीसरा नियम जैसा बोओगे वैसा काटोगे। ऑफिस / सामाजिक पॉलिटिक्स में इन इलास्टिक कोलिशन थ्योरी। ट्रस थ्योरी जितने लोगों का सपोर्ट होगा उतने स्टेबल रहेंगे आप। ग्रेडिएंट थ्योरी चीज़ें हमेशा ज्यादा से कम की ओर ही जाती हैं (उल्टा करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है जैसे फ्रिज एसी) अच्छी बाते ज्यादा ज्ञान वाले से ही मिलती हैं।  अपनी कक्षाओं में छात्रों को जीवन और इंजीनियरिंग के सिद्धांतों से जोड़ते प्रोफेसर रितेश शर्मा को हर कोई गंभीरता से सुनता है। राष्ट्रीय प्रौद्योगिक संस्थान रायपुर से अध्यापन शुरू करने वाले रितेश ने केआईटी में 13 साल पढ़ाया। फिर आईटीआई में ज्ञान का प्रकाश फैला रहे हैं। इनकी समझाने के प्रति एकदम प्रैक्टिकल एप्रोच रहती है। सरल शब्दों और उदाहरण से सिद्धांत और प्रेमेयों को छात्रों को कंठस्थ करवा देते हैं। इसी कारण रितेश सर आईटीआई हो या केआईटी में अदब से लिया जाने वाला नाम है।  रायगढ़ के रहने वाले प्रो. रितेश शर्मा ने सरस्वती शिशु मंदिर से प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद रायपुर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से 2010 में मेकेनिकल इंजीनियर बने। एनआईटी रायपुर और केआईटी में अध्यापन का कार्य किया फिर 2015 में एमटेक मैट्स विश्वविद्यादय से पूरा किया। अभी ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी से पीएचडी जारी है। फिलहाल रितेश 2023 से राज्य सरकार के एम्प्लॉयमेंट ट्रेनिंग डिपार्टमेंट में आईटीआई रायगढ़ में ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट अधिकारी के रूप में पदस्थ हैं।  वह मानते हैं कि ज्यादा मेहनत रिप्रजेंट्स बेहतर जिम्मेदारी निभाना, पढ़ाई एम्प्लॉयबिलिटी बढ़ाने के तरीकों में से एक है। प्रो. रितेश बताते हैं कि उन्हें इंजीनियरिंग के लिए कोई खास संघर्ष नहीं करना पड़ा बस अनुकंपा नियुक्ति की कोशिश के दौरान इंजीनियरिंग में 2 साल बाद प्रवेश लिया। थोड़ा विलंब हुआ पर अब अब ठीक है। इंजीनियरिंग ने हमे बनाया है। मेरोटियस छात्र होने के बाद भी कोई लेक्चर या प्रैक्टिकल से अधिक दूसरी घटनाएं रोमांच ले आती हैं। मुझे आज भी याद है फर्स्ट ईयर खत्म होने के बाद वेलकम पार्टी के दौरान शिकायत होने पर पुलिस का वेन्यू पर पहुंचना और हमारा पेट भर के मार खा के सूखी नाली में छिपना। ऐसी घटनाएं जीवनभर याद रहती है।  प्रो. शर्मा बताते हैं आजकल प्रैक्टिकल / एप्लीकेशंस बेस्ड पढ़ाई की कमी है जिससे लिमिटेड इंस्टीट्यूट्स में ही बेहतर शिक्षा मिल रही है। टेक्निकल एजुकेशन की बुनियाद बेहतर करने के लिए सुधार के पैमाने तैयार करना जरूरी है।  भावी इंजीनियर्स को नसीहत देते हुए वह कहते हैं कि बच्चे पसंद की ब्रांच सेलेक्ट करें, इंटर डिसिप्लिनरी ब्रांच लेना बेहतर होगा। फिलहाल एआई और ऑटोमेशन, इंजीनियरिंग और इंजीनियर पर ज्यादा प्रभाव नहीं डाल सकते। ये अभी मानवीय बुद्धिमता से काफी पीछे हैं मौलिकता मानव जाति के पास ही रहेगी कुछ और साल।  qqq <b>जो सीखता है वह बढ़ता है :  कमल प्रसाद कंवर, ईई, पीएचई</b> जिले के सबसे कम उम्र के कार्यपालन अभियंता 34 वर्षीय कमल प्रसाद कंवर लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में पदस्थ हैं। अपनी ऊर्जा और दूरदर्शिता से वह विभागीय कार्यों में बेहतर कर रहे हैं। तकनीकी और गैर तकनीकी स्टाफ के साथ उनका सामंजस्य गजब का है। जगदलदपुर शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग करने के बाद 2015 में हाउसिंग बोर्ड में इंजीनियर बने फिर 2017 में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के इंजीनियर के लिए हुई परीक्षा में इन्होंने अपने वर्ग में स्टेट टॉप किया। ईई कमल कहते हैं कि जो पढ़ा वह आज काम आ रहा है। इंजीनियरिंग की शिक्षा हमें हर काम को आसान तरीके से करना सिखाती है बस आपमें लगन होनी चाहिए। मैं सामान्य परिवार से था,  छोटी जगह से इंजीनियरिंग करने गया। थोड़ी झिझक थी पर जैसे ही हॉस्टल गया वहां एक से एक धुरंधर लोग मिले। कोई कहीं का टॉपर तो कोई दूसरी विधा में आगे। सब साथ थे इसी कारण कॉलेज का हॉस्टल मेरे लिए एक लर्निंग सेंटर था। 4 साल की पढ़ाई के बाद मैं आत्मविश्वास से लबरेज कुछ करने को तैयार था। मां के चतुर्थ वर्ग कर्मचारी होने के नाते इंजीनियरिंग करने में संघर्ष हुआ, पैसे का मोल मालूम था इस कारण सिर्फ मेहनत को तव्जजो दी। लोग सफलता देखते हैं उसके पीछे की मेहनत को नहीं। विभागीय कार्य में सभी का सहयोग इसलिए भी मिलता हैं कि मैं सबके लिए हर समय तैयार रहता हूं। फील्ड का अलग ही एक्सपोजर होता है। समय के साथ परिपक्वता और अनुशासन बढ़ता ही जाता है। ईई कमल बताते हैं कि मैं अपने मूल को जानता हूं इसलिए अपना कार्य ईमानदारी और लगन से करता हूं। जमाने में नकारात्मकता और सकारात्मकता दोनों हैं यह आप पर निर्भर करता है आप कैसे आगे बढ़ते हैं। वर्तमान में इंजीनियर बनना आसान है पर इंजीनियरिंग का गुर वही सीख पाता है जिसमें लगन होती है। सिर्फ डिग्री लेने वाले भीड़ में खो जाते हैं क्वालिटी पढ़ाई वाले ही आगे आते हैं। अभी कॉमप्टिशन बढ़ गया है यहां जो सीखता है वही आगे बढ़ता है और सीखने की प्रक्रिया कभी खत्म नहीं होती। अंत में आज के भावी इंजीनियर्स के पास सीखने के लिए कई माध्यम हैं पर वो जिस माध्यम से सीखें उसे कंठस्थ करें। अन्यथा आगे पाट पीछे सपाट हो जाता है। सोशल मीडिया के इस युग में भावी इंजीनियर्स के दिमाग को दिग्भ्रमित कर रही है, समय रहते उन्हें एकाग्रचित्त होकर अपने विषयों पर ध्यान देना चाहिए। तभी तो वह बच्चा आगे जाकर मल्टीस्कील्स वाला बन पाएगा।
सच्ची घटनाओं से प्रेरित छत्तीसगढ़ी हॉरर कॉमेडी फिल्म दंतेला कल से सिनेमाघरों में
रायगढ़ के बेटे डॉ. शांतनु ने क्राउड फंडिंग से है बनाई फिल्म, 2 सितंबर को फिल्म को पूरी कास्ट आ रही है रायगढ़, पत्रकारों के साथ देखेगी फिल्म
इस्कॉन के बाहुड़ा रथ यात्रा में हरिनाम संकीर्तन की रही गूंज
इस्कॉन रायगढ़ के सानिध्य में बाहुड़ा रथ यात्रा का आयोजन
ऐतिहासिक होगा इस्कॉन रायगढ़ का जन्माष्टमी महामहोत्सव
एनआईटी रायपुर और खैरागढ़ से भजन करने आयेगा युवाओं का ग्रुप , स्वस्तिवाचन, हरिनाम जप और भगवान का पुष्प अभिषेक रहेगा विशेष आयोजन
11 साल में 10 गुना बढ़ गई श्रीराम शोभायात्रा की भव्यता
पहली बार श्री रामजन्म के अवसर पर पूरे नगर को सजाया जा रहा, 70 झांकियों और दर्जनों दल होंगे शोभायात्रा में शामिल
भगवान झूलेलाल की छत्रछाया में मेहनतकश सिंधी समाज का शून्य से लेकर शिखर तक का सफर
सिंधी समाज : संघर्ष, मेहनत और विकास की गाथा , विभाजन से विकास तक
असमंजस बाबू की आत्मकथा के मंचन से शुरू हो रहा है रायगढ़ इप्टा का 30 वां राष्ट्रीय नाट्य समारोह
17 से 19 जनवरी तक पॉलीटेक्निक ऑडिटोरियम में होगा आयोजन
शुरू से ठगा जाता रहा है रायगढ़-आखिर कब तक?
छत्तीसगढ़ एक नये राज्य के तौर पर बनने से पहले रायगढ़ संभावनाओं के बड़े केन्द्रों में से एक था, लेकिन जब छत्तीसगढ़ बना तो रायगढ़ को एक तरह से ठेंगा दिखा दिया गया। नये बने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर ने हथिया ली और खुद को न्यायधानी बताते हुए बिलासपुर में हाईकोर्ट और रेवेन्यू बोर्ड जैसे न्यायिक संस्थाओं को अपने हिस्से में शामिल कर लिया। अलावे इसके और भी ढेर सारे राज्य स्तरीय संस्थान रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर जैसे जिलों ने झटक लिये। <b>रायगढ़ से छल</b> दरअसल रायगढ़ शुरू से ही ठगा जाता रहा है। वास्तव में छत्तीसगढ़ बनने से पहले मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ की जो स्थिति थी छत्तीसगढ़ बनने के बाद छत्तीसगढ़ में वहीं हाल रायगढ़ का है। बीते 25 वर्षों में रायगढ़ को ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिस पर रायगढ़ के लोग गर्व कर सके। इसी बीच छत्तीसगढ़ के मौजूदा मुख्यमंत्री माननीय विष्णुदेव जी साय जब भारत सरकार के मंत्री थे तब उनके प्रयासों से ही रायगढ़ की झोली में रेल्वे टर्मिनल का सौगात डाला गया था जिसके लिये उनकी उपस्थिति में ही पूरे विधि-विधान के साथ भूमि पूजन भी हुआ था लेकिन वर्षों बीत जाने के बाद भी वह टर्मिनल रायगढ़ की झोली से धरातल पर अभी तक नहीं दिखलाई पड़ा है। कह सकते है कि रायगढ़ की झोली के किसी छेद से टर्मिनल का वह सौगात बाहर निकल गया होगा। <b>गौरवशाली अतीत</b> रायगढ़ का एक गौरवशाली अतीत रहा है जहां रियासती दौर में ही 14 देशी राज्यों (रियासतों) का एक अपना हाईकोर्ट हुआ करता था जिसमें भारत के ख्यातिलब्ध न्यायाधीश हिदायत उल्लाह अपनी सेवाएं दे चुके थे, यहीं नहीं रायगढ़ में तात्कालीन १४ पूर्वी रियासतों की राजधानी भी थी और अब वहीं रायगढ़ इन मायनों में आजादी के पहले जहां खड़ा था वहीं खड़ा है। इस बीच अभी हाल के दिनों में यह बात भी सामने आई थी कि रायगढ़ को आने वाले दिनों में राजस्व संभाग का दर्जा दिया जायेगा। अलावे इसके पुलिस का रेंज कार्यालय भी रायगढ़ में ही होगा। ये दोनों बातें अचानक कहां गुम हो गई पता ही नहीं चला जबकि इसी बीच सरगुजा याने अंबिकापुर को संभाग का दर्जा दिया जा चुका है। अलावे इसके कुछ और भी है जिसमें रायगढ़ के जिला जेल को सेन्ट्रल जेल का दर्जा दिये जाने की बात सामने आई थी जिसकी अनुशंसा छ.ग. हाईकोर्ट की एक कमेटी ने की थी पर अभी तक न तो रायगढ़ को संभाग का दर्जा दिया गया न पुलिस का रेंज कार्यालय यहां आया और न ही रायगढ़ जेल को सेन्ट्रल जेल का दर्जा दिया गया। रायगढ़ के साथ किये गये इस सौतेले सलूक के पीछे कुछ भी कारण हो सकते हैं लेकिन इतना तय है कि रायगढ़ को जो मिलना था वह नहीं मिला। ऐसे कई मिसाल है जैसे रायगढ़ में हवाई अड्डे की बात थी वह भी विवादों में उलझकर अकाल मौत का शिकार हो चुका है जबकि इसी बीच बिलासपुर और अंबिकापुर को हवाई अड्डे की सौगात दी जा चुकी है। कुछ यही हाल यहां के केलो बांध का भी है जिसके लोकार्पण के दशक बीत चुके हैं लेकिन बांध से आज तक किसानों के खेतों में पानी का एक बूंद नहीं पहुंचा है। अलबत्ता इसी बीच ९० के दशक में टिड्डी दल की तरह यहां आये उद्योगोंपतियों ने अपने उद्योगों के लिये केलो डेम से पानी लेने की व्यवस्था बेरहमी से कर ली। दरअसल ९० के दशक में जिले के एक बड़े भू-भाग में कोयले के अकूत खजाने का पता चल गया था जिसके चलते देश के कोने-कोने से उद्योगपति यहां पहुंच गये, उन्होंने हजारों एकड़ खेती की जमीन हथिया ली। बड़े पैमाने पर जंगलों को रौंद डाला नतीजा यह हुआ कि रायगढ़ जिला अराजक औद्योगिककरण की चपेट में आ गया परिणाम स्वरूप जिले में औद्योगिक परिवहन से जुड़े भारी भरकम वाहनों की भीड़ लग गई जो जिले के खस्ताहाल सडक़ों पर दौड़ते हुए हादसों को अंजाम देने लगे। वहीं दूसरी ओर बेलगाम उद्योगपतियों ने जिले के पर्यावरण को पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया। आज रायगढ़ छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है। आलम यह है कि समूचे छत्तीसगढ़ में फेफड़ों के लिये दवा की जितनी खपत होती है उन सब में सबसे ज्यादा रायगढ़ में होती है। यहां मृत्यु दर में खासा इजाफा हो चुका है। यह भी उल्लेखनीय है कि जिले में हुए औद्योगिकरण के मद्देनजर रायगढ़ में किरोड़ीमल इंस्ट्रीयूट ऑफ टेक्नोलॉजी की स्थापना उद्योगों की तकनीकी आवश्यकता पूरी करने के उद्देश्य से की गई थी, लेकिन यह संस्था बमुश्किल दस साल के बाद भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। अब स्थिति यह है कि संस्था बंद हो चुकी है इसके कर्मचारी वेतन नहीं मिलने के कारण भूखमरी के कगार में पहुंच चुके हैं और संस्था मौत की हिचकियों के साथ जिंदा है। स्थानीय जन तथा इस संस्था के कर्मचारी संस्था को राज्य शासन द्वारा सरकार के अधीन लिये जाने की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन अलग-अलग पार्टियों के सरकार ने इस मांग की पूरी तरह अनदेखी कर दी और इसके विपरीत दुर्ग में कर्ज से डूबे चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कॉलेज को शासनाधीन कर लिया गया। qqq <b>अब ऊंची छलांग के लिये तैयार है रायगढ़</b> इन परिस्थितियों के लिये अगर किसी को जवाबदेह ठहराया जा सकता है तो वह सिर्फ रायगढ़ की जनता और उसके राजनैतिक नेतृत्व ही है। बहरहाल अब इन बातों को लेकर गिला-शिकवा का कोई अर्थ नहीं है, अब तो बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले के अनुसार आगे ही जाना होगा। इन मायनों में दो राय नहीं की विधानसभा के पिछले चुनाव में रायगढ़ से पूर्व आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी का चुना जाना रायगढ़ के लिये भाग्योदय जैसा ही है। अपने एक साल के कार्यकाल में ही ओपी चौधरी ने रायगढ़ में विकास के लिये जो खाका खिंचा है उसी में विकास को लेकर उनकी सुलझी हुई समझ और अवधारणा की झलक मिल जाती है। उन्होंने इन एक वर्ष में विकास के हर क्षेत्र में योजनाओं की मंजूरी देकर यह जता दिया है कि उनके पास रायगढ़ के विकास की ठोस रूप-रेखा है। जिसके तहत रायगढ़ में चौतरफा फोरलेन सडक़ों का जाल बिछाया जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बेहतर पहलकदमी हुई है। खासतौर पर शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा परिसर जैसे ज्ञान के संस्थान की स्थापना इन मायनों में बेहद पिछड़े रायगढ़ के लिये एक क्रांतिकारी शुरूआत है। इस संस्थान के शुरू हो जाने से रायगढ़ के युवाओं को जरूरी पुस्तकों के लिये भटकना नहीं पड़ेगा और वे इस संस्थान का लाभ लेते हुए प्रतियोगी परीक्षाओं में अपनी जगह बनाने में निश्चित तौर पर कामयाब होंगे और यहीं वास्तविक विकास है। ओपी चौधरी का विजन अभी अपने समग्र रूप में नहीं दिखलाई पड़ा है लेकिन आने वाले दो-तीन वर्षों में रायगढ़ को एक नई पहचान के साथ देखा जा सकेगा। कह सकते हैं कि तब रायगढ़ विकास के मायनों में एक ऊंची छलांग लगाने के लिये तैयार हो चुका होगा।
अग्निवीर, अग्निपथ और सियासत....
योजना से सेना कमजोर होगी या नहीं यह वक्त बताएगा लेकिन इस योजना के बंद होने से देश जरुर कमजोर होगा
रायगढ़ स्वास्थ्य विभाग का दामाद तिलेश दीवान !
आयुष्मान घोटाले से हर बार बचा, बहुमंजिला निजी आवास होने के बाद अब विभाग ने दिया आलीशान आवास का तोहफा
फैला रहा विनाश का फन , घरघोड़ा का स्टील इंडस्ट्री सन
लोगों के विरोध की कोई सुनवाई नहीं, जन नहीं धन सुनवाई कर रहे उद्योगपति
शुरू से ठगा जाता रहा है रायगढ़-आखिर कब तक?
छत्तीसगढ़ एक नये राज्य के तौर पर बनने से पहले रायगढ़ संभावनाओं के बड़े केन्द्रों में से एक था, लेकिन जब छत्तीसगढ़ बना तो रायगढ़ को एक तरह से ठेंगा दिखा दिया गया। नये बने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर ने हथिया ली और खुद को न्यायधानी बताते हुए बिलासपुर में हाईकोर्ट और रेवेन्यू बोर्ड जैसे न्यायिक संस्थाओं को अपने हिस्से में शामिल कर लिया। अलावे इसके और भी ढेर सारे राज्य स्तरीय संस्थान रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर जैसे जिलों ने झटक लिये। <b>रायगढ़ से छल</b> दरअसल रायगढ़ शुरू से ही ठगा जाता रहा है। वास्तव में छत्तीसगढ़ बनने से पहले मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ की जो स्थिति थी छत्तीसगढ़ बनने के बाद छत्तीसगढ़ में वहीं हाल रायगढ़ का है। बीते 25 वर्षों में रायगढ़ को ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिस पर रायगढ़ के लोग गर्व कर सके। इसी बीच छत्तीसगढ़ के मौजूदा मुख्यमंत्री माननीय विष्णुदेव जी साय जब भारत सरकार के मंत्री थे तब उनके प्रयासों से ही रायगढ़ की झोली में रेल्वे टर्मिनल का सौगात डाला गया था जिसके लिये उनकी उपस्थिति में ही पूरे विधि-विधान के साथ भूमि पूजन भी हुआ था लेकिन वर्षों बीत जाने के बाद भी वह टर्मिनल रायगढ़ की झोली से धरातल पर अभी तक नहीं दिखलाई पड़ा है। कह सकते है कि रायगढ़ की झोली के किसी छेद से टर्मिनल का वह सौगात बाहर निकल गया होगा। <b>गौरवशाली अतीत</b> रायगढ़ का एक गौरवशाली अतीत रहा है जहां रियासती दौर में ही 14 देशी राज्यों (रियासतों) का एक अपना हाईकोर्ट हुआ करता था जिसमें भारत के ख्यातिलब्ध न्यायाधीश हिदायत उल्लाह अपनी सेवाएं दे चुके थे, यहीं नहीं रायगढ़ में तात्कालीन १४ पूर्वी रियासतों की राजधानी भी थी और अब वहीं रायगढ़ इन मायनों में आजादी के पहले जहां खड़ा था वहीं खड़ा है। इस बीच अभी हाल के दिनों में यह बात भी सामने आई थी कि रायगढ़ को आने वाले दिनों में राजस्व संभाग का दर्जा दिया जायेगा। अलावे इसके पुलिस का रेंज कार्यालय भी रायगढ़ में ही होगा। ये दोनों बातें अचानक कहां गुम हो गई पता ही नहीं चला जबकि इसी बीच सरगुजा याने अंबिकापुर को संभाग का दर्जा दिया जा चुका है। अलावे इसके कुछ और भी है जिसमें रायगढ़ के जिला जेल को सेन्ट्रल जेल का दर्जा दिये जाने की बात सामने आई थी जिसकी अनुशंसा छ.ग. हाईकोर्ट की एक कमेटी ने की थी पर अभी तक न तो रायगढ़ को संभाग का दर्जा दिया गया न पुलिस का रेंज कार्यालय यहां आया और न ही रायगढ़ जेल को सेन्ट्रल जेल का दर्जा दिया गया। रायगढ़ के साथ किये गये इस सौतेले सलूक के पीछे कुछ भी कारण हो सकते हैं लेकिन इतना तय है कि रायगढ़ को जो मिलना था वह नहीं मिला। ऐसे कई मिसाल है जैसे रायगढ़ में हवाई अड्डे की बात थी वह भी विवादों में उलझकर अकाल मौत का शिकार हो चुका है जबकि इसी बीच बिलासपुर और अंबिकापुर को हवाई अड्डे की सौगात दी जा चुकी है। कुछ यही हाल यहां के केलो बांध का भी है जिसके लोकार्पण के दशक बीत चुके हैं लेकिन बांध से आज तक किसानों के खेतों में पानी का एक बूंद नहीं पहुंचा है। अलबत्ता इसी बीच ९० के दशक में टिड्डी दल की तरह यहां आये उद्योगोंपतियों ने अपने उद्योगों के लिये केलो डेम से पानी लेने की व्यवस्था बेरहमी से कर ली। दरअसल ९० के दशक में जिले के एक बड़े भू-भाग में कोयले के अकूत खजाने का पता चल गया था जिसके चलते देश के कोने-कोने से उद्योगपति यहां पहुंच गये, उन्होंने हजारों एकड़ खेती की जमीन हथिया ली। बड़े पैमाने पर जंगलों को रौंद डाला नतीजा यह हुआ कि रायगढ़ जिला अराजक औद्योगिककरण की चपेट में आ गया परिणाम स्वरूप जिले में औद्योगिक परिवहन से जुड़े भारी भरकम वाहनों की भीड़ लग गई जो जिले के खस्ताहाल सडक़ों पर दौड़ते हुए हादसों को अंजाम देने लगे। वहीं दूसरी ओर बेलगाम उद्योगपतियों ने जिले के पर्यावरण को पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया। आज रायगढ़ छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है। आलम यह है कि समूचे छत्तीसगढ़ में फेफड़ों के लिये दवा की जितनी खपत होती है उन सब में सबसे ज्यादा रायगढ़ में होती है। यहां मृत्यु दर में खासा इजाफा हो चुका है। यह भी उल्लेखनीय है कि जिले में हुए औद्योगिकरण के मद्देनजर रायगढ़ में किरोड़ीमल इंस्ट्रीयूट ऑफ टेक्नोलॉजी की स्थापना उद्योगों की तकनीकी आवश्यकता पूरी करने के उद्देश्य से की गई थी, लेकिन यह संस्था बमुश्किल दस साल के बाद भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। अब स्थिति यह है कि संस्था बंद हो चुकी है इसके कर्मचारी वेतन नहीं मिलने के कारण भूखमरी के कगार में पहुंच चुके हैं और संस्था मौत की हिचकियों के साथ जिंदा है। स्थानीय जन तथा इस संस्था के कर्मचारी संस्था को राज्य शासन द्वारा सरकार के अधीन लिये जाने की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन अलग-अलग पार्टियों के सरकार ने इस मांग की पूरी तरह अनदेखी कर दी और इसके विपरीत दुर्ग में कर्ज से डूबे चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कॉलेज को शासनाधीन कर लिया गया। qqq <b>अब ऊंची छलांग के लिये तैयार है रायगढ़</b> इन परिस्थितियों के लिये अगर किसी को जवाबदेह ठहराया जा सकता है तो वह सिर्फ रायगढ़ की जनता और उसके राजनैतिक नेतृत्व ही है। बहरहाल अब इन बातों को लेकर गिला-शिकवा का कोई अर्थ नहीं है, अब तो बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले के अनुसार आगे ही जाना होगा। इन मायनों में दो राय नहीं की विधानसभा के पिछले चुनाव में रायगढ़ से पूर्व आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी का चुना जाना रायगढ़ के लिये भाग्योदय जैसा ही है। अपने एक साल के कार्यकाल में ही ओपी चौधरी ने रायगढ़ में विकास के लिये जो खाका खिंचा है उसी में विकास को लेकर उनकी सुलझी हुई समझ और अवधारणा की झलक मिल जाती है। उन्होंने इन एक वर्ष में विकास के हर क्षेत्र में योजनाओं की मंजूरी देकर यह जता दिया है कि उनके पास रायगढ़ के विकास की ठोस रूप-रेखा है। जिसके तहत रायगढ़ में चौतरफा फोरलेन सडक़ों का जाल बिछाया जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बेहतर पहलकदमी हुई है। खासतौर पर शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा परिसर जैसे ज्ञान के संस्थान की स्थापना इन मायनों में बेहद पिछड़े रायगढ़ के लिये एक क्रांतिकारी शुरूआत है। इस संस्थान के शुरू हो जाने से रायगढ़ के युवाओं को जरूरी पुस्तकों के लिये भटकना नहीं पड़ेगा और वे इस संस्थान का लाभ लेते हुए प्रतियोगी परीक्षाओं में अपनी जगह बनाने में निश्चित तौर पर कामयाब होंगे और यहीं वास्तविक विकास है। ओपी चौधरी का विजन अभी अपने समग्र रूप में नहीं दिखलाई पड़ा है लेकिन आने वाले दो-तीन वर्षों में रायगढ़ को एक नई पहचान के साथ देखा जा सकेगा। कह सकते हैं कि तब रायगढ़ विकास के मायनों में एक ऊंची छलांग लगाने के लिये तैयार हो चुका होगा।
अग्निवीर, अग्निपथ और सियासत....
योजना से सेना कमजोर होगी या नहीं यह वक्त बताएगा लेकिन इस योजना के बंद होने से देश जरुर कमजोर होगा
रायगढ़ स्वास्थ्य विभाग का दामाद तिलेश दीवान !
आयुष्मान घोटाले से हर बार बचा, बहुमंजिला निजी आवास होने के बाद अब विभाग ने दिया आलीशान आवास का तोहफा
फैला रहा विनाश का फन , घरघोड़ा का स्टील इंडस्ट्री सन
लोगों के विरोध की कोई सुनवाई नहीं, जन नहीं धन सुनवाई कर रहे उद्योगपति
कलेक्टर भीम सिंह ने भारी बारिश के बीच संभाला मोर्चा, देखें तस्वीरें
निगम अमला बीती रात से आयुक्त के साथ पूरे शहर में डटा हुआ है
तस्वीरों में देखें रायगढ़ में जनता कर्फ्यू का असर
22 मार्च यानी रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर जिले में भी जनता कर्फ्यू का असर देखने को मिला। दोपहर तक पूरा शहर स्वस्फूर्त बंद था। हर मुख्य मार्ग और बाजार बंद मिले। गली-कूचे तक कोई व्यक्ति बाहर नहीं निकला।
हरि बोल, जय जगन्नाथ के उद्घोष के साथ निकली रथयात्रा, देखें गैलरी
रायगढ़ में दो दिनों की रथयात्रा आयोजित होती रही है। इसी क्रम में आज रथ द्वितिया के दिन शहर के प्राचीन जगन्नाथ मंदिर से भगवान श्री को विधिविधान पूर्वक पूजा अर्चना पश्चात मंदिर के गर्भगृह तथा मंदिर परिसर से जय जगन्नाथ के जयघोष और घंट शंख ध्वनि के बीच ससम्मान बाहर निकाला गया। राजापारा स्थित प्रांगढ़ में मेले सा माहौल था और हजारो की संख्या में श्रद्धालु भक्तगण भगवान श्री के दर्शन करने के लिए पहुंचे हुए थे। इससे पहले कल भगवान जगन्नाथ की विधि विधान से पूजा की गई जिसे फोटोग्राफर वेदव्यास गुप्ता ने अपने कैमरे में कैद किया।
इप्टा रायगढ़ के 25वें राष्ट्रीय नाट्य समारोह एवं फिल्म फेस्टिवल की झलकियां
27 से 31 जनवरी तक पॉलिटेक्निक ऑडिटोरिम में इप्टा रायगढ़ द्वारा 25वां राष्ट्रीय नाट्य समारोह एवं फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया गया। जिसमें चार नाटक एवं दो फीचर फिल्में दिखाई गईं। समारोह की शुरुआत रायपुर के मशहूर रंगकर्मी मिर्जा मसूद को 10वां शरदचंद्र वैरागकर अवार्ड देकर की गई। यह कूवत सिर्फ रंगमंच रखता है जो वर्तमान सत्ता के मठाधीशों पर अजब मदारी गजब तमाशा नाटक के माध्यम से सीधे कटाक्ष कर सकता है। जहां एक मदारी को राजा बना दिया जाता है, शब्दों के अस्तित्व को खत्म कर दिया जाता है। बंदर राष्ट्रीय पशु बन जाता है। गांधी चौक नाटक में गांधीजी की प्रतिमा स्वयं यह चलकर वहां से हट जाती है कि जब रक्षक की भक्षक बन गए तो कोई क्या कर सकता है। नोटबंदी और जीएसटी पर गांव वाले सीधे प्रहार करते हैं। सुबह होने वाली है की लेखी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर प्रतिबंध होने के बाद लोगों को जागरूक करने को किताब लिखती और किताब को ही फांसी हो जाती है। बोल की लब आजाद हैं तेरे लोगों को दर्शकदीर्घा में झकघोर के रख देती है। तुरूप और भूलन जैसी फिल्में लोगों के मनोरंजन के अलावा दमदार संदेश भी देती है। तो देखें इस शानदार नाट्य समारोह एवं फिल्म फेस्टिवल की कुछ झलकियां
हमारे बारे में
raigarhexpress.com आप का अपना वेब पोर्टल है | ब्रेकिंग, सनसनी और सोशल मीडिया के इस दौर में ख़बरों की खबर लेना और उसकी तह तक जाना हमारा मूल उद्देश्य है | अभी हम शुरुआती चरण में है, आप के सहयोग से हमें इसे नई ऊँचाइयों तक ले जाना है |

हमसे संपर्क करें :
Raigarh Express,
C/O Abhishek Upadhyay
Chakradhar Nagar, Kaser para, Near Adarsh School, Raigarh (C.G.), 496001
9873953909, 9111912333, 9827933909

Mail : [email protected]
Twitter : @raigarhexpress
Facebook : @ExpressRaigarh

Owner/Director : Mr. Abhishek Upadhyay
9873953909
[email protected]

Editor : Mr. Arun Upadhyay
98279-33909
[email protected]

Marketing Head : Abhinav Sharma
99265-99997
[email protected]
Citizen Journalist
raigarhexpress.com अपने पाठकों से सीधा जुड़ा है | आप हमारे सबसे बड़े सूचना स्त्रोत हैं | यदि आपके आसपास कोई घटना, दुर्घटना या भ्रष्टाचार हो रहा है या कोई वृतांत / प्रेरक सन्दर्भ / सामाजिक सरोकार / अनुभव हो तो आप हमसे साझा कर सकते हैं | आपके अनुसार हम आपकी गोपनीयता बरकरार रखेंगे और आपके कहने पर ही नाम उल्लेखित करेंगे |
हमें संदेश भेजने के लिए